________________
अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 15
यह कुण्डपुर आज बासुकुण्ड या वसाढ़ के नाम से जाना जाता है। इसके अधिपति राजा सिद्धार्थ राजा सर्वार्थ और महारानी श्रीमति के पुत्र थे। उनका प्रजावत्सल व्यवहार मनमोहक था । न्याय-नीति से सम्पन्न वे प्रजा का पालन करते थे। उनकी महारानी त्रिशला वैशाली के अधिनायक महाराजा चेटक की बहिन थी। राजा चेटक का अधीनस्थ वैशाली गणतंत्र सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता था।
राजनीतिक दृष्टि से यह समय उथल-पुथल का रहा है। इस समय कहीं राजतन्त्रात्मक और कहीं गणतन्त्रात्मक शासन प्रणाली थी। राजतंत्र में सत्ता राजा के हाथ में और गणतंत्र में शासन की बागडोर जनता के हाथ में रहती थी। राजतंत्र में वंशानुगत राजा बनते थे। उनमें उस समय अवन्ति, वत्स, कौशल और मगध प्रधान थे। गणराज्यों में वज्जी, मल्ल, शूरसेन आदि प्रधान थे। राजतन्त्र में भी सर्वत्र व्यवस्थाएं एक समान नहीं थीं। मगध में राजा ही सर्वप्रमुख माना जाता था जबकि सिन्धु में राज्य सम्बन्धी समस्त कार्य वृद्धजन-परिषद करती थी और राजा केवल युद्ध का नेतृत्व करता था। स्थान-स्थान पर क्रान्तिकारी परिवर्तन हो रहे थे।
इस समय विदेह जनपद में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ। वहां की प्रजा ने कामी राजा करालजनक को समाप्त कर जनकों की राजसत्ता का उच्छेद कर दिया और संघ राज्य की स्थापना की। उसी समय विदेह के समीप वैशाली राज्य में लिच्छवियों का संघ राज्य–विस्तार को प्राप्त कर रहा था। अतः विदेह भी उसमें सम्मिलित हो गया। परिणामस्वरूप वहां वज्जिगण की स्थापना हो गयी। इधर काशी में भी नागवंशी क्षत्रियों का राज्य स्थापित हुआ, इन्हीं के वंश में भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म हुआ। इस प्रकार ईसा पूर्व छठी शताब्दी के आस-पास महाभारतकालीन वैदिक राज्यसत्ताओं का अन्त हो गया और नागादि, विद्याधर, लिच्छवी, मल्ल, मौर्य आदि व्रात्य क्षत्रियों ने राज्यसत्ताएं स्थापित की। अंग और मगध तथा काशी और कौशल आपस में संघर्षरत थे। ई. पू. छठी शताब्दी में उत्तर भारत के राज्यों पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए संघर्ष चल रहा था। उसमें मुख्य रूप से कौशल, वत्स, अवन्ति और मगध के शासक प्रमुख रूप से भाग ले