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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 13
लोक में सूर्य की सहस्रकिरणें प्रसिद्ध हैं, इसलिए उसे सहस्रकिरण कहा गया है। ऋतुभेद से उसकी अधिक किरणें भी होती हैं जैसा कि कहा है चैत्र में 1200 किरणें, वैशाख में 1300, ज्येष्ठ में 1400, आषाढ़ में 1500, श्रावण में 1400, भाद्रपद में 1400, अश्विन में 1600, कार्तिक में 1100, मिगसर में 1050, पौष में 1000, माघ में 1100, फाल्गुन में 1050 किरणें होती हैं। (क) कल्पसूत्र; वही; पृ. 38-52 (ख) कल्पसूत्र; कल्पलता व्याख्या; वही; पृ. 53-70 आवश्यक सूत्र; मलयगिरि वृत्ति; पूर्वभाग; प्रका. आगमोदय समिति; सन् 1928; पृ. 254 (क) कल्पसूत्र; सुबोधिका वृत्ति; वही; पृ. 14 (ख) कल्पसूत्र; पृथ्वीचन्द टिप्पण; सूत्र 53; पृ. 55 वही; पृ. 55 आचारांग सूत्र; आचार्य शीलांक वृत्ति; द्वितीयश्रुत स्कन्ध; प्रका. आगमोदय समिति; सन् 1916; अध्ययन 15 आचारांग; वही; अध्ययन 15 कल्पसूत्र; सुबोधिका वृत्ति; वही; पृ. 55-64 भगवती सूत्र; वही; पृ. 709 कल्पसूत्र; सुबोधिका; वही; पृ. 64-67 भगवती सूत्र; वही; शतक 16/6; पृ. 709 कल्पसूत्र; सुबोधिका वृत्ति; वही; पृ. 65 भगवती सूत्र थोकड़ा; भाग 5-6; प्रका. अगरचन्द भैरूंदान सेठिया, बीकानेर; वि. संवत 2040; थोकड़ा न. 126; शतक 16/6; पृ. 79-81 (क) आवश्यक सूत्र; मलयगिरि वृत्ति; वही; पृ. 253; भाष्य गाथा 46 (ख) भगवती; अभयदेव वृत्ति; वही; शतक 11; उद्देश्क 11 आवश्यक सूत्र; उत्तरार्ध; भद्रबाहु स्वामि प्रणीत नियुक्ति भाष्य एवं हरिभद्रसूरि कृत वृत्ति युक्त; प्रका. आगमोदय समिति; सन् 1917; पृ.
502 21. कल्पसूत्र: सुबोधिका; वही; पृ. 68