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अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 12 प्रकार के देवताओं से सेवित होंगे।
गम्भीर क्षीरसमुद्र के समान तीर्थंकर देव गंभीर होंगे। (12) भवन या विमान को प्रदक्षिणा करते हुए देखने से तीर्थंकर
भगवान् देव-देवियों द्वारा पूजनीय होंगे। (13) रत्नराशि देखने से रत्नमय होंगे। (14) तेजयुक्त अग्निशिखा देखने से तीर्थंकर भगवान् तप-तेजयुक्त
होंगे।
यहां यह भी उल्लेख मिलता है कि जो तीर्थंकर चक्रवर्ती नरक से आते हैं, उनकी माता विमान के स्थान पर भवन देखती है। जो तीर्थंकर चक्रवर्ती देवलोक से आत हैं. उनकी माता विमान देखती है | वर्तमान में 23 (तेईस) तीर्थंकरों की माताओं को इसी क्रम से स्वप्न आये लेकिन भगवान् ऋषभदेव की माता मरुदेवी को प्रथम वृषभ का, दूसरा हस्ती का स्वप्न आया । इन चौदह स्वप्नों का अर्थ अन्य प्रकार से भी कल्पसूत्र में उपलब्ध होता है। अन्य स्वप्नों का वर्णन भी भगवती सूत्र, शतक 16 (सोलह), उद्देशक 7 (सात) में मिलता है।
संदर्भः स्वप्नलोक अध्याय 1 1. औपपातिक सूत्र; अभयदेव सूरि विरचित वृत्ति, द्रोणाचार्य शोधित वृत्ति;
प्रका. आगमोदय समिति; सन् 1916; सूत्र 10; पृ. 15-17; प्रथम संस्करण। कल्पसूत्र; आचार्य विनयविजयजी कृत सुबोधिका वृत्ति; प्रका. देवचन्द लालभाई जैन; पुस्तकोद्धार समिति - सन् 1923; पृ. 36; सूत्र 31 (क) भगवती सूत्र; वृत्तिकार अभयदेव सूरि; प्रका. आगमोदय समिति; सन् 1923; शतक 16/6; पृ. 709 (ख) कल्पसूत्र; आचार्य विनयविजयजी कृत सुबोधिका वृत्ति; वही; पृ. 36 कल्पसूत्र; वही; पृ. 38 (क) कल्पसूत्र; वही; पृ. 38-47 (ख) कल्पसूत्र; भद्रवाह रचित समयसुन्दरगणि विरचित कल्पलता व्याख्या; प्रकाशक जिनदत्त सूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत, सन् 1939: पृ. 95-62
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