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अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 14 क्षत्रियकुण्ड - द्वितीय अध्याय
क्षत्रियकुण्ड के चौराहों, त्रिराहों, राजमार्गों- सभी पर चर्चा हो रही है, परस्पर एक-दूसरे से वार्तालाप कर रहे हैं, "हमारी महारानी त्रिशला ने बड़े श्रेष्ठ स्वप्न देखे हैं। अब जन्म लेने वाला राजकुमार बड़ा ही शूरवीर होगा। हमारा क्षत्रियकुण्ड धन्य बन जायेगा। वह दिन धन्य होगा जब हम उस राजकुमार के दर्शन कर पायेंगे।" सभी भगवान् महावीर के जन्म का निरन्तर इन्तजार कर रहे हैं। धन्य है क्षत्रियकुण्ड की वह पावन भूमि, जहां भगवान् महावीर अवतरित हुए', उसका इतिहास समुज्ज्वल पृष्ठों में लिखा गया। क्षेत्र की दृष्टि से क्षत्रियकुण्ड विदेह जनपद के वैशाली का एक हिस्सा था। वस्तुतः वैशाली का कुण्डपुर दो भागों में विभक्त था, क्षत्रियकुण्ड और ब्राह्मणकुण्ड' । क्षत्रियकुण्ड में ज्ञातवंशीय क्षत्रियों का निवास था । यह ब्राह्मणकुण्ड के उत्तर में स्थित था। इतिहास में ऐसा उल्लेख मिलता है कि गण्डक नदी के पश्चिमी तट पर ये दोनों कुण्डपुर स्थित थे जो कि एक-दूसरे से पूर्व-पश्चिम में पड़ते थे। यही क्षत्रियकुण्ड ग्राम अपनी विशिष्ट विशेषताओं से अलंकृत भव्य भूमि का रूप धारण कर रहा था। यह विशाल परकोटे से युक्त, अनेक प्रकार की खाइयों, वापिकाओं एवं वाटिकाओं से समन्वित था। नगर के कोट के प्रान्त भाग में रत्न मणियां लगी थीं जिनकी प्रभा संध्या राग की शोभा प्रकीर्ण कर रही थीं। इन्द्रनीलमणिजटित भूमि भ्रमर-भ्रांति को पैदा कर रही थी। विशाल भवन एवं उन्नत गोपुर दर्शनीय, अभिरूप, प्रतिरूप थे। भवनों के अग्रभाग में जटित चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियां अनूठी आभा प्रसृत कर रही थीं। उन्नत धवल प्रासाद और उन पर मोती, हीरक, वैडूर्य मणियां, मरकत मणियां सहसा पथिकों का मन आकृष्ट कर लेती थीं। उन्नत परकोटों से वेष्टित इस नगर पर शत्रु आक्रमण करने में असमर्थ थे। यह नगर धन-धान्य से परिपूर्ण था। यहां के नगर का आयाम मीलों लम्बा था। पंक्तिबद्ध भवन, जलज सम्भृत सरोवर, कमलिनीयुक्त पुष्करणियां जनसमूह के आकर्षण का केन्द्र थीं।