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ओगस्ट - २०१३
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श्री विनयप्रभोपाध्याय निर्मित दो लघु कृतियाँ श्री सीमन्धर एवं इक्कवीस स्थान गभित नेमि स्तवन
- सं. म. विनयसागर
जैन समाज में सर्वजन प्रसिद्ध 'गौतम रास' - 'वीर जिणेसर चरणकमल कमलाकय-वासउ' के प्रणेता महोपाध्याय विनयप्रभ खरतरगच्छ में हुए हैं । दादा जिनकुशलसूरिजी के स्वहस्तदीक्षित शिष्य थे । इनके सम्बन्ध में यत्र-तत्र जो स्फुट उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे हैं -
खरतरगच्छालंकार युगप्रधानाचार्य गुर्वावली (पृ. ७९) के अनुसार वि. सं. १३८२, वैशाख सुदि ५ के दिन भीमपल्ली (भीलडियाजी) में साधुराज वीरदेव सुश्रावक कारित दीक्षा, मालारोपणादि नन्दी महामहोत्सव के समय, जिनकुशलसूरिजी ने इनको दीक्षा प्रदान कर इनका विनयप्रभ नामकरण किया था । इसमें विनयप्रभ के लिये क्षुल्लक शब्द का प्रयोग किया गया है, अतः तब बाल्य/किशोर अवस्था १० से १५ वर्ष की होनी चाहिए । फलतः इनका जन्म १३६७ से १३७२ के मध्य हुआ हो, ऐसी कल्पना कर सकते
विनयप्रभ कहाँ के निवासी थे ? माता-पिता का क्या नाम था ? आदि उल्लेख प्राप्त नहीं है । अधिक सम्भावना यही है कि ये खम्भात के ही निवासी हो ।
क्षमाकल्याणीय पट्टावली के अनुसार तत्कालीन गच्छनायक जिनलब्धि सूरि जो कि विनयप्रभ के सहपाठी भी थे, ने इन्हें उपाध्याय पद प्रदान किया था । पट्टावली में संवत् का उल्लेख नहीं है, तथापि अनुमान है कि वि.सं. १३९४ और १४०६ के मध्य ही ये उपाध्याय बने होंगे ।
___ मन्त्रीश्वर वीरा और मन्त्रीश्वर सारङ्ग ने सं. १४३१ में नरसमुद्र से सिद्धाचल का यात्रासंघ जिनोदयसूरि की अध्यक्षता में निकाला था । यह संघ प्रयाण करता हुआ घोघावेलकुल (घोघा बन्दर) स्थान पर पहुंचा और तत्र स्थित नवखण्डापार्श्वनाथ की पूजा अर्चना की । घोघा में ही विराजमान
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