Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ ११० अनुसन्धान-६२ शुद्धपाठ हतो. अटले 'विरचित' पाठ छोडीने 'विचरति' पाठ वाचनामां स्वीकारवानो थयो. आ परथी ओ शीखवां मळ्युं के जे कृतिनुं सम्पादन हाथ उपर लीधुं होय तो अनी अंक हस्तप्रत मळी जतां काम शरू करवाने बदले शक्य अटली प्रतो प्राप्त करवी जोईओ. ओक ज हस्तप्रतमां उधई के अवा कोई कारणे पाठ खवाई गयो होय, पलळी के चेराई गयो होय तो अनी अवकाशपूर्ति अन्य प्रतमांथी थई शके. भ्रष्ट पाठनी शद्धि थई शके अने पाठपसंदगीनी पण तक रहे. एकाधिक प्रतो हाथवगी थई होय तो प्रतनी प्राचीनतमता ने प्रमाणभूतताने ध्यानमा राखी वाचना माटेनी पण प्रतपसंदगीनी तक रहे छे. हस्तप्रतसूचिओने आधारे वधु हस्तप्रतोनी भाळ मेळवी शकाय. 'गुणरत्नाकर छन्द'नी मने १८ प्रतो प्राप्त थई हती अमांथी १० प्रतोने आधारे मारुं सम्पादनकार्य थयुं हतुं. अक ज कृतिनी जुदीजुदी हस्तप्रतोमा जे पाठभेदो जोवा मळे छे अमांथी केटलाक तो लेखनकारनी सरतचूकथी के विषयसन्दर्भ नहि पकडावाथी थयेला भ्रष्ट पाठो होय छे. 'गुणरत्नाकर छन्द'मां कोशाना वर्णनमां अक पंक्ति आवे छे 'भमुह-कमांणि करी तिहां ताकई तीर-कडक्ख.' (कोशा भ्रम्मररूपी कमान उपर नयन- कटाक्ष-तीर ताके छे.) पण केटलीक प्रतोमां ‘भमुहकमांणि'ने बदले 'भमुह-कामिनी' पाठ हतो जे अशुद्ध हतो. हस्तप्रत-सम्पादन माटे सम्पादकने सौ प्रथम लिपिवाचननो अभ्यास होवो जोइओ. आजना मुद्रित वर्णो करतां हस्तप्रतमां लिपिमरोड घणा वर्णोमां जुदो पडे छे. जो लिपिवाचन खोटु थाय तो लिप्यन्तरमा 'भक्षण' शब्द 'लक्षण' थई जाय, 'पाप' शब्द 'पाय' बने, अने पडिमात्रा ह्रस्व 'इ' जेवी वंचाई जतां 'हेत' शब्द 'हित' बनी जाय. ओक लिप्यन्तरित वाचना मारे हस्तप्रत साथे मेळववानी आवी. लिप्यन्तर हतुं 'भवसागर नीर तरीओ रे.' वाक्यार्थ बराबर बेसी पण जतो हतो. पण हस्तप्रत जोतां अमां पाठ हतो 'भवसागर निस्तरीओ रे'. जुओ, अहीं 'निस्तरीओ'मांना अडधा 'स'नी वच्चेनी पांख बराबर नहि ऊकलतां ओ अडधो 'स' सम्पादकने 'र' तरीके वंचायो, परिणामे मूळनो 'निस्तरीओ' पाठ 'नीर तरीओ'मां फेरवायो. आम लिपिवाचन ओ हस्तप्रत सम्पादन- प्रथम सोपान. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138