Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 134
________________ ओगस्ट २०१३ - जैन ग्रन्थागारोमां सचवायेली हस्तप्रतिओ ते मूळभूत रीते जैन मुनिओनी मालिकीनी सम्पत्ति छे. तेमां समायेला ग्रन्थो तथा कृतिओ जैन मुनिओए रच्या छे; तेमणे ज लख्या अथवा लखाव्या छे; सैकाओ सुधी तेमणे ज साचव्या छे; नष्ट थवा आवेला ग्रन्थोनी समयान्तरे नकलो पण तेमणे करी - करावी छे. वळी, ते ग्रन्थोनुं अध्ययन-अध्यापन युगोथी तेओए कर्तुं छे. ते ग्रन्थो भणवावांचवा माटे, कोई पण योग्य होय तेवी जैन के अजैन व्यक्तिने जोईए त्यारे तेमणे पूरा पाड्या छे. श्रीपुण्यविजयजीए केटलाये देशी-परदेशी विद्वानोने तथा अनेक मुनिओने प्रतो, ग्रन्थो संशोधनार्थे पूरा पाड्या छे; अनेक विद्वानो ते माटे तेमनो ऋणस्वीकार करे छे. अने आ बधा ग्रन्थोनो विश्वनी कोई पण व्यक्ति उपयोग करी शके तेवा शुभ आशयथी ज, तेमणे कस्तूरभाई द्वारा ला.द. विद्यामन्दिरनी स्थापना करी छे. ओ रीते तो ए आखोये ग्रन्थागार वैश्विक वारसो जगणी शकाय तेम छे. जोके पाछला केटलाक समयथी, जैन मुनिओ माटे, तेनो उपयोग करवो अघरो बनतो जाय छे. घणा, घणी रीतना प्रयत्नो पछी कशीक सामग्री मळे तो मळे, अने आवनारा समयमां तो ते वधु ने वधु विकट बनशे, तेम धारी शकाय तेम छे. १२७ आस्थितिमां, 'वैश्विक वारसा' मां प्रतने लई जवानी प्रवृत्ति, जो कोई सवालो जगाडे, तो तेने 'विरोध' तरीके खपावीने तेनी अवगणना न थवी जोईए. सरकारी ग्रान्ट जो संस्थानी स्वायत्तता जोखमावी शके अने सरकारी हस्तक्षेपने नोतरी शके तो, वैश्विक वारसा माटेनी आ प्रवृत्ति, प्रत / प्रतोने भारत सरकारने अने परम्पराए युनेस्कोने आयत्त करती होवानुं कोई समजे, तो तेमां तेने विरोधी के प्रत्याघाती गणीने हसी काढवा न जोईए, बल्के तेनी दूरदर्शी दृष्टिनो आदर करवो जोईए. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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