Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
ओगस्ट - २०१३
१०९
लाक्षणिकताओने जाळवतो अने नानीमोटी ८० जेटली कथाओने संघरतो बालावबोध अने जीवनबोध अर्पती हास्यरसप्रधान ३४ लौकिक कथाओनी मालासमी 'विनोदचोत्रीसी' - आ त्रण मध्यकालीन रचनाओ सौ प्रथम प्रकाशित थई.
___आ सिवाय महावीर जैन विद्यालय प्रकाशित आठेक पुस्तकोनुं सम्पादनकार्य थयु. अमांनां केटलांक प्रद्युम्नसूरिजी अने जयन्त कोठारीना सहयोगमां थयां. वचगाळे गुजराती साहित्यकोश अने विश्वकोशमां अधिकरणलेखन थयु. जयन्तभाईना आकरग्रन्थ समा 'जैन गूर्जर कविओ'ना १० भागमां जे नवसंस्करण अने 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश'नी प्रवृत्तिमां, अमना नाजुक स्वास्थ्यने कारणे हुं, कीर्तिदा वगेरे अमनी सहायमा रहेवाने निमित्ते संशोधनसम्पादननी शिस्त अंगे अमे घणुं शीख्या.
जो आ महानुभावोनां प्रेरणा, प्रोत्साहन अने मार्गदर्शन न मळ्यां होत तो मारे हाथे जे कांई कामो थयां ओ थई शक्यां होत के केम ओ अंगे मने शङ्का छे.
वळी, मुम्बईना डॉ. रमणलाल ची. शाहे जैन साहित्य समारोहो निमित्ते तेमज इन्डोलोजीना वर्तमान डायरेक्टर जितेन्द्र बी. शाह अने सर्वत्र छवाई रहेला कुमारपाळ देसाईओ हस्तप्रतविद्यानी वर्कशोप, सर्टिफिकेट कोर्स, शिबिर अने सेमिनारोने निमित्ते मने स्वाध्यायरत राख्यो छे. आ सौ प्रत्ये मारी कृतज्ञता व्यक्त करवानी तक लउं छु. मारां कुटुम्बीजनोओ पण मने रोजिंदी घरेळु जंजाळमांथी मुक्त अने नचिंत राख्यो छे अने हूंफ पूरी पाडी छे अनी पण अहीं नोंध लउं छु.
पूज्य मुनिराज पुण्यविजयजी, कार्यक्षेत्र हस्तप्रतविद्यानु. अनां अनुलक्ष्यमां, हस्तप्रतसम्पादन अंगे मारा केटलाक अनुभवोने सांकळी लईने थोडीक वात करीश.
____ 'गुणरत्नाकर छन्द' कृतिना आरम्भमां सरस्वतीदेवी, गुणकीर्तन करती स्तुति आवे छे. वाचना माटे में स्वीकारेली प्रतमां पाठ हतो 'विरचित कविजनहृदये' आना अर्थान्वय बेठा नहीं. पण अन्य प्रतोमां पाठ हतो 'विचरति कविजनहृदये' (हे देवी ! तुं कविजनोना हृदयमां विचरे छे.) आ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138