Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 114
________________ ओगस्ट - २०१३ १०७ हस्तपत-सम्पादननी शिस्त विषे थोडंक दिशासूचन डॉ. कान्तिलाल बी. शाह शास्त्राध्ययन, हस्तप्रतभण्डारोनो समुद्धार, हस्तप्रतविद्यानी विशेषज्ञता अने हस्तप्रतो, संशोधन-सम्पादन - आ स्वरूपे आजीवन जेमनो ज्ञानयज्ञ चालतो रह्यो ओवा परमपूज्य आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराजनुं नाम जेनी साथे जोडायुं छे ओ चन्द्रकनो स्वीकार करता सहज रीते धन्यता अने आनन्दनी अनुभूति मने थाय. पण साथेसाथे अथीये अधिक संकोच पण अनुभवी रह्यो छु. आ महात्मानी सामे, अने मारी अगाउ जे विद्वज्जनो काम करी गया छे अनी तुलनाओ हुं ने मारुं काम शी विसातमां ! परन्तु जे निर्णय लेवायो छे अने माथे चडावीने, मारी आभारनी लागणी व्यक्त करुं छु. किशोरावस्थामां माएं घडतर बे संस्थाओने आभारी छे. मेट्रिक सुधी सी.एन. विद्याविहार. त्यां सात वर्षनो छात्रावास अने विशिष्ट शिक्षण प्रणालीने लईने गांधीविचारधारानो स्पर्श अमे छात्रो पाम्या. रेंटियो, खादी, प्रार्थना, स्वावलम्बन आ बधुं छात्रजीवन साथे ओतप्रोत थयु. पछीनां चार वर्ष महावीर जैन विद्यालयनी पालडी शाखामां. त्यां रात्रे धार्मिक वर्गो फरजियात. पण्डित सुखलालजीना सम्पादनवाळो उमास्वाति वाचकनो 'तत्त्वार्थसूत्र' ग्रन्थ अभ्यासक्रममां. पद्मनाभ जैनी ओ शीखवे. ग्रन्थआरम्भनु ज सूत्र 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः'. तेओ कहे 'जुओ, मोक्षमार्गः अकवचनमां छे. पण ओ मार्ग जेने कह्यो छे ओ पद 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि' बहुवचनमां छे. ओटले आ त्रणेना समन्वयथी ज मोक्षमार्ग प्राप्त थाय. अकनी पण न्यूनता न चाले.' आम, अहीं जैनिझमनी किञ्चित् तत्त्वसमज प्राप्त थई. _ पछी अम.ओ. मां युनि. भाषाभवनना अध्यक्षश्री उमाशङ्कर जोशी, आरम्भिक अध्यापनकाळमां 'प्रकाश'मां आचार्य ची.ना. पटेल अने प्रा. जयन्त कोठारी, बी.डी. कोलेजमां आचार्य सन्तप्रसाद भट्ट - आ सौनां व्यक्तित्वोनो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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