Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 120
________________ ओगस्ट - २०१३ ११३ शीलचन्द्रसूरिजीओ 'अनुसन्धान'नी ओक प्रस्तावनामां स्वाध्यायने संशोधननो गुण कह्यो छे. स्वाध्याय जेटलो सुदृढ अटलुं संशोधन सत्यनी नजीक. विषयनी जाणकारीनो अभाव संशोधन-सम्पादनमां अन्तराय सर्जे छे. मध्यकालीन घणी कृतिओमां दृष्टान्तकथानो केवळ निर्देश होय. पण बने अर्बु के से निर्दिष्ट कथा आपणे जाणता ज नथी होता. मारो अनुभव कहुं. 'गुणरत्नाकर छन्द'मां अक पाठ हतो. 'आगि परजालई चुलणी.' अर्थात् चुलणी आग प्रजळावे छे. पण आ 'चुलणी' शुं ? जयन्तभाई प्रमाणो शोधे ने हुं तुक्का लडा. अहीं आग प्रजळाववानी वात छे अटले चुलणीनो अर्थ नानो चूलो थतो हशे ? के पछी चूलो पेटाववानी भुंगळी हशे ? ओवामां अक दिवस श्रीमहाबोधिविजय गणिने मळवा- थयु. चुलणीनो अर्थ पूछयो. कहे चुलणी ओ तो ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीनी मातानुं नाम छे. पछी तो अनी आखी कथा जाणी. विधवा चुलणी राणीओ पडोशी राजा साथेना आडा सम्बन्धोने कारणे सगीर पुत्रनी हत्या करवा लाक्षागृहमां आग लगाडी हती, ओ सन्दर्भ अहीं हतो. वात शी हती ने केवा अनुमाने चडी जवायुं हतुं ! ओटली स्वाध्यायनी अधूरप. तात्पर्य से छे के संशोधनमां तथ्योनी जाळवणी महत्त्वनी बने छे. - वळी, मध्यकालीन जैन कृतिओमां आवता जैन पारिभाषिक शब्दोना विशिष्ट अर्थसन्दर्भो होय छे. ओ न समजातां विषयने यथातथ ग्रहण करी शकातो नथी. जेमके समिति, गुप्ति, जयणा, सद्दहणा, आवश्यक, अतिशय, लेश्या, पच्चक्खाण जेवा शब्दो अना विशेष अर्थोमां प्रयोजाय छे. ____ में अहीं मारा अनुभवोनां केटलांक उदाहरणो टांकीने हस्तप्रतसंशोधन विशे केटलीक वात करी. हजी अनां पाठान्तरो, पाठपसंदगी, अना आधारो, कृतिना कर्तृत्व अने रचनासमयना कोयडाओ, प्रक्षिप्त गाथाओ, तत्कालीन भाषास्वरूपनी जाळवणी, जोडणीनी अतन्त्रता वगेरे विशे घणुं कही शकाय अम छे पण समयमर्यादाने लइने अहीं अटकुं. जोई शकाशे के आ हस्तप्रत-सम्पादननी प्रक्रिया अेक चोक्कस शिस्त मागी ले छे. हस्तप्रत-संशोधके पोताना काम द्वारा वाचकने सर्जकनी मूळ रचनानी निकटतम पहोंचाडवानो छे. ओमां क्षति जेटली वधारे अटलुं ते वाचकने रचनाथी दूर लई जाय छे. केमके सरेराश वाचक तो प्रकाशित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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