________________
१२२
अनुसन्धान-६२
१. प्राकृत भाषा प्राचीन काल में जनभाषा के रूप में एक समृद्ध राजभाषा
रही है। वर्तमान में इसका विशाल साहित्य उपलब्ध है। किन्तु सरकार की ओर से इसके व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु अभी तक अत्यल्प ही प्रयास हुए हैं । अतः भारत सरकार द्वारा भाषाओं की मान्य आठवीं अनुसूची में प्राकृत भाषा को भी सम्मिलित किया जाये, ताकि इसकी चरणबद्ध रूप में निरन्तर प्रगति होती रहे । राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से सम्बद्ध अनेक आदर्श संस्कृत महाविद्यालय एवं कुछ आदर्श संस्कृत शोध-संस्थान सम्पूर्ण देश में संचालित हो रहे हैं । अत: आरम्भिक चरण में कम से कम एक प्राकृत महाविद्यालय एवं एक प्राकृत शोध संस्थान को आदर्श योजना के अन्तर्गत गृहीत करके राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के अन्तर्गत स्थापित किया जाए । जयपुर, वाराणसी, मुम्बई, लखनऊ एवं भोपाल – इन शहरों में से किसी एक में इनकी स्थापना से प्राकृत भाषा के अध्ययन के इच्छुक विद्यार्थी एवं
शोध छात्र सहज रूप में बहुतायत उपलब्ध हो सकते हैं। ३. केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित देश के किसी भी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों
एवं अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में प्राकृत भाषा एवं साहित्य के अध्ययन हेतु स्वतन्त्र विभाग नहीं हैं । अतः आरम्भ में इनमें से कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों में स्वतन्त्र प्राकृत भाषा एवं साहित्य विभाग की स्थापना
की जाये । ४. सी.बी.एस.ई. तथा देश के अन्य सभी माध्यमिक (१०+१२) की
परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में निर्धारित भाषाओं के स्थान पर वैकल्पिक रूप में प्राकृत भाषा के पाठ्यक्रम के अध्ययन का प्रावधान किया जाये। इससे सब तक प्राकृत में उच्च शिक्षा प्राप्त शताधिक युवा विद्वानों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त हो सकेंगे, साथ ही माध्यमिक कक्षाओं से ही प्राकृत भाषा के अध्ययन के प्रति छात्रों में आकर्षण बढ़ेगा और इससे प्राकृत भाषा के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं अध्ययन
को भी अधिक बढ़ावा मिलेगा । ५. राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के दस परिस्में में से किसी भी परिसर में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org