Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ओगस्ट - २०१३
११९
विद्याओना पूरा जाणकार श्री वसन्तभाई नम्रतानी साथे पोते जे माने छे तेनी प्रतीति सौने कराववा पूरा कटिबद्ध होय छे. अकली विद्या सन्मानने पात्र बनावती नथी परन्तु अमां ज्ञान, क्रिया, तप, साधना भळ्यां होय तो ज मुक्ति प्राप्त थाय.
ओ पछी निरंजन राज्यगुरु द्वारा आचार्यश्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराजसाहेब द्वारा श्री वसन्तभाईने उद्देशीने लखायेला पत्रनुं वांचन करवामां आव्युं, स्यारबाद प्रशस्तिपत्रनुं वांचन किशोरभाई पाठक द्वारा थयुं अने श्री वसन्तभाईनुं सन्मान डॉ. मनोजभाई रावल तथा ट्रस्टीओ श्री अशोकभाई गान्धी, अतुलभाई कापडिया, बिपीनभाई शाह, संदीपभाई शेठ द्वारा तिलक, माला, श्रीफळ, शाल, सरस्वतीनी प्रतिमा, प्रशस्तिपत्र तथा पंचोतेर हजारनी राशिना चेक साथे हेमचन्द्राचार्य चन्द्रकनी अर्पण प्रदान विधि ताळीओना गडगडाट वच्चे करवामां आव्यु.
श्रीप्रणव पण्ड्याओ आ प्रसङ्गे आवेला शुभेच्छासन्देशाओगें वांचन कर्यु त्यारबाद श्रीवसंतभाई परीखे सन्मानप्रतिभाव आपतां जणावेलुं के, 'महाकवि कालिदासनुं ओक वाक्य छे के - 'बहु क्लेश होय, अत्यन्त पीडा थती होय अमां अचानक सुफळ प्राप्त थई जाय तो वेदना ओछी के अदृश्य थई जाय. ओक सन्तनी कृपाथी आप बधा कोई सुफळरूपे मारे त्यां पधार्या अटली मारी शारीरिक पीडा हळवी थई गई छे. अकस्माते हुं अमदावाद न आवी शक्यो अने आपने अहीं आवq पड्युं बदल सतत अपराधभाव अनुभववा छतां ओक रीते जोईओ तो हुं राजी थयो छु. सारा प्रताप गाय माताना के जेना कारणे समग्र भूमण्डळने पोताना तप, ज्ञान, चारित्र, धर्म अने श्रद्धानां अजवाळांथी झळहळतुं करनारा कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी जेवी महान विभूतिना नामे आटला बधा सारस्वतो अने श्रेष्ठिओ मारे त्यां आव्या. आप सौमां हुं अनां किरणावलीनां तेज जोउं छु. आ मारुं सद्भाग्य छे. मारुं जीवन तो धन्य बन्यु पण माएं मरण पण आप सौओ सुधारी दीधुं छे. गुजराती भाषानो बीजनिक्षेप जेमना हाथे थयो. अनुं साहित्य, तर्क, योग, धर्म अने जीवननां तमाम क्षेत्रोमां जेमर्नु अद्वितीय प्रदान छे ओवा सन्तना नाम साथे जोडायेलुं आ बहुमान मारा जीवननी सन्ध्याना आकाशमां हमेशां शुक्रकणिकानी माफक चमक्या करशे.
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