Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ओगस्ट - २०१३
१११
पण लिप्यन्तर ओ कंई ओक कागळ परथी बीजा कागळ परनो उतारो नथी. हस्तप्रतमां बधा ज अक्षरो भेगा लखाया होईने संशोधक माटे पदविभाजननी - पाठनिर्धारणनी खरी कसोटी रहे छे, अने ओ माटे भाषानुं ज्ञान अनिवार्य बने छे. जे भाषानी कति होय ओ भाषा ज जो न जाणता हो तो शब्दविभाजन कराशे ज केवी रीते ? 'उपदेशमाला बालावबोध' अने देवचन्द्रजीनी स्तवनचोवीशीना स्वोपज्ञ बालावबोधना सम्पादनमां मने भाषानी मुश्केली नडी हती. बन्ने बालावबोधो जूनी गुजरातीमां, पण उपदेशमालानी मूळ गाथाओ प्राकृतमां, तेमज स्तवन-चोवीशीना बालावबोधमां आवतां विविध धर्मग्रन्थोमांनां उद्धरणोअवतरणो प्राकृतमां. ओ माटे अन्योनुं मार्गदर्शन अनिवार्य बन्युं हतुं. अटले अनुभवे कही शकुं के मध्यकाळनी जैन गुजराती रचनाना सम्पादके प्राकृत भाषानो जरूरी परिचय केळवी लेवो जोई.
_ 'गुणरत्नाकर छन्द'मां कोशाविरहना वर्णनमां अक पछी अेक आवती पंक्तिओमां अकसरखो वर्णक्रम जोवा मळ्यो. जेमके 'मेखल मेखल परि संतावइ'. प्रथम दृष्टिपाते तो लाग्युं के कविओ बधे शब्दोनी द्विरुक्ति करी छे. पण आ शब्दद्विरुक्ति नहोती. पण काव्यसौन्दर्यविभूषित यमक प्रयोगो हता. अने पदविभाजन आम थतुं हतुं : 'मेखल मे खल परि संतावइ'. (कोशानो विरहोद्गार छे के हे स्थूलिभद्र ! तारा विरहमां मारी कटिमेखला मने खलनी जेम संतापे छे.) बीजो यमकप्रयोग जुओ -
___ हुँ यौवनभरि तइं कां टाली, लागइ सेज हवे कांटाली'. अहीं कांटाली वर्णक्रमनी द्विरुक्ति छे पण शब्दो जुदा छे. प्रथम चरणमां कोशा कहे छे 'हे स्वामी ! भरयुवान मेवी मने तें कां टाळी ? शाने तरछोडी ?' बीजा चरणमां कहे छे 'हवे मने आ शय्या कांटाळी लागे छे.' अहीं जो पाठनिर्णय खोटो थाय तो पंक्तिनुं समग्र काव्यसौन्दर्य अळपाई जाय. 'विनोदचोत्रीसी'मां अक कडी आम हती -
'सजनीयां सपनंतरिउं मुझ आवी मिलीयांह,
है है नयणां पापियां, जागी नीगमीयांह.' छेल्ला भेगा लखायेला अक्षरो मारा मनमां आम ज गोठवाया : 'जागीने
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