Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 119
________________ ११२ अनुसन्धान-६२ गमीयां - गम्यां'. पण 'पापी नयणां'नी साथे 'गम्यां'नो मेळ केम बेसे ! पण पछी धीमेधीमे पाठ बेठो. ओ हतो 'जागी नीगमीयांह' काव्यनायक कहे छे, "प्रियजन स्वप्नमां आवीने मने मळ्यां. पण हे पापी नयनो ! तमे जागी जतां स्वप्नमां आवेल प्रियजन दूर थइ गया." आम पाठनिर्धारण हस्तप्रत-सम्पादन- बीजुं सोपान. सम्पादन- त्रीजुं सोपान छे अर्थनिर्णयनु. जोके आ 'सोपान' शब्द तो सगवड माटे वापरेलो छे. हकीकते पाठनिर्धारण अने अर्थनिर्णयनी प्रक्रिया समांतरे ज चालती होय छे. जो मनमां अर्थसन्दर्भ बेसी गयो होय तो पाठ आपोआप गोठवाई जाय. अने जो पाठनिर्णय साचो थयो होय तो अर्थ पण सरळताथी ऊकली आवे. छतां केटलांक स्थानोमां साचो पाठ बेसाड्या पछी पण अर्थ अस्पष्ट रहेतो होय छे. 'विनोदचोत्रीसी'मां अक विरहोद्गार आम हतो - "तेरे विरह मूं देह दही, जिउ वन बूंघचीयाइं, आधे जल भई कोईला, आधे लोही-मांस." पाठ निर्धारण तो बराबर ज हतुं, पण 'चूंघचीयाइ'नो अर्थ समजाय नहीं. पछी हिन्दी शब्दकोशमांथी अनो अर्थ 'चणोठी' मळ्यो. जे अर्थ मळतां आखुंये भावचित्र अलङ्कारमण्डित बनी गयु. चणोठी अडधी लाल ने अडधी काळी होय. नायिका कहे छे के "तारा विरहमां मारो देह चणोठीनी जेम अडधो बळीने कोलसा जेवो काळो थयो ने अडधो रक्तरंगी लोही-मांस बनी रह्यो." क्यारेक लिपिवाचन अने पाठनिर्णय बन्ने साचां होय, प्रत्येक शब्दनो अर्थ पण स्पष्ट होय छतां वाक्यनो अर्थान्वय ज न पकडाय अq पण बने. कोशानो परिचय आपतां कवि सहजसुन्दर कहे छ 'रजनी- ओक लक्ष.' शब्दो स्पष्ट हता, पण वाक्यार्थ बेसाडवानी गडमथल. शीलचन्द्रसूरिजीने मळीने अर्थ पूछ्यो. तरत कहे, 'अरे, आ तो तद्दन स्पष्ट छे. पाटलीपुत्रना राजदरबारीओ कोशाने आंगणे आवे त्यारे कोशा ओक रात्रिना अक लाख सोनैया वसूलती. ओ सन्दर्भ अहीं छे.' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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