Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 121
________________ ११४ अनुसन्धान-६२ सामग्रीने स्वीकारीने ज चालशे. अ प्रकाशित रचनाने मूळ हस्तप्रत साथे मेळववा जवानो नथी. __ अहीं उपस्थित युवान मित्रोने कहीश के मित्रो ! जेटलुं प्रकाशित थयुं छे अनाथी अप्रकाशितनुं प्रमाण घणुं वधारे छे. ज्ञानभण्डारोनां पोटलां ने दाबडाओमां बद्ध रहेली आ हस्तप्रतो प्रकाशमां आववा आपणी राह जुओ छे. ओ पडकार आप सौओ झीलवानो छे. आ भार केवळ श्रमणसमुदायसंतसमुदायने खभे मूकीने आपणे अळगा थइ जवू शोभशे नहीं. ___ आगमप्रभाकर मुनिराज पुण्यविजयजीनु पुनित स्मरण आप सौने सत्यशोधनी आ केडीओ डग मांडवा प्रेरी रहो ओ ज अभ्यर्थना. पुनः पूज्य गुरुभगवन्तोने वंदन करुं छु अने चन्द्रक-समिति, गुजरात विश्वकोश ट्रस्ट, तेमज अत्रे उपस्थित रही मने प्रोत्साहित करवा बदल सौ विद्वज्जनो, स्वजनो, स्नेहीजनोनो आभार मानी विरमुं छु. [ता. १७-२-२०१३ना रोज गुजरात विश्वकोश भवन, अमदावाद खाते, आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराज स्मृति-चन्द्रक प्रदान प्रसङ्गे प्रत्युत्तररूपे अपायेलुं वक्तव्य] न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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