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अनुसन्धान-६२
अतिरिक्त पं. (डॉ.) दरबारीलालजी कोठिया द्वारा रचित जैनतत्त्व, ज्ञानमीमांसा, पं. सुमेरचन्द दीवाकर द्वारा रचित जैन शासन, पं. दलसुखभाई द्वारा रचित आगमयुग का जैनदर्शन, विजयमुनि जी रचित जैन दर्शन के मूलतत्त्व, आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा जैनदर्शन मनन और मीमांसा, पं. देवेन्द्रमुनि जी द्वारा रचित जैनदर्शन स्वरूप व विश्लेषण एवं जैनदर्शन मनन और मूल्यांकन, पं. महेन्द्रकुमारजी जैन द्वारा रचित जैनदर्शन, मुनि महेन्द्रकुमार द्वारा रचित जैन दर्शन एवं विद्या, जिनेन्द्रवर्णी द्वारा रचित जैन दर्शन में पदार्थ विज्ञान, डॉ. मोहनलाल महेता द्वारा रचित जैनदर्शन, मुनि न्यायविजय जी द्वारा रचित जैनदर्शन प्रमुख आदि ग्रन्थ है । इसके अतिरिक्त जैनधर्मदर्शन के विविध पक्षों के लेकर हिन्दी में पर्याप्त साहित्य की रचना हुई है। इनमें डॉ. रतनचन्द जैन का शोध प्रबन्ध - जैन दर्शन में निश्चय और व्यवहारनय : एक परिशीलन, पं. कैलाशचन्द्रशास्त्री का जैन न्याय एवं प्रमाण नय निक्षेप प्रकाश, डॉ. सागरमल जैन के जैनभाषादर्शन, जैन दर्शन में द्रव्य गुण और पर्याय, जैन दर्शन का गुणस्थान सिद्धान्त प्रमुख ग्रन्थ है । यहा हमने हिन्दी के कुछ ग्रन्थों का उल्लेख किया है, वैसे तो हिन्दी भाषा जैन धर्म एवं दर्शन से सम्बन्धित सैकडों ग्रन्थ है । जिनके नामोल्लेख से यह निबन्ध-निबन्ध न रहकर एक ग्रन्थ ही बन जायेगा । इसी क्रम में साध्वी धर्मशीलाजी का नवतत्त्व, मुनि प्रमाणसागरजी का जैन धर्म और दर्शन, साध्वी विद्युतप्रभाजी का द्रव्यविज्ञान, समणी मङ्गलप्रज्ञाजी की आर्हती दृष्टि भी जैनधर्मदर्शन के प्रमुख ग्रन्थ माने जाते है । हिन्दी भाषा के अतिरिक्त बंगाली, पंजाबी, मराठी
और कन्नड भाषाओं में भी आधुनिक युग में जैनधर्मदर्शन से सम्बन्धित कुछ ग्रन्थ प्रकाश में आए है। विस्तार भय से उन सब की चर्चा करना यहा सम्भव नहीं है । दार्शनिक समस्याओं के लेकर पं. सुखलालजी के दर्शन और चिन्तन में प्रकाशित कुछ महत्त्वपूर्ण आलेख भी इस दृष्टि से विचारणीय है । इसी क्रम में पं. कन्हैयालालजी लोढ़ा ने भी नव तत्त्वों पर अलग अलग रूप से स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे हैं । वैसे गुजराती भाषा में भी पर्याप्त रूप से जैन धर्म दर्शन सम्बन्धी साहित्य के ग्रन्थ लिखे गये है । किन्तु इस सम्बन्ध में मेरी जानकारी की अल्पता के कारण उन पर विशेष कुछ लिख पाना सम्भव नहीं है । यद्यपि अंग्रेजी भारतीय भाषाओं का एक अंग नहीं है, फिर भी
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