________________
ओगस्ट - २०१३
विकलेन्द्रियने पांच अने संज्ञी पंचेन्द्रियने छ पर्याप्ति संभवे. आमां असंज्ञी पंचेन्द्रिय विशे अटले अलगथी नथी जणाव्युं के अत्रे 'विकल'नो अर्थ 'मनरहित' करीने तेमने पण विकलेन्द्रिय ज गणी लेवाना छे. पण जो 'विकलेन्द्रिय' ने प्रचलित 'इन्द्रियविकलता'ना सन्दर्भे ज प्रयोजीए तो असंज्ञी पंचेन्द्रिय 'विकलेन्द्रिय' न गणाय. माटे आजे आ पाठ परिवर्तन पाम्यो छे : "चउ पंच पंच छप्पिय इगविगलाऽसन्निसन्नीणं"
(-नवतत्त्व- गाथा ६) ५५. योग मे वीर्यना प्रयोग स्वरूप छे. तेथी तेमां सत्य के असत्यनो व्यपदेश
थवो शक्य नथी. तो पण मनोविज्ञानगत के वचनगत सत्यत्व-असत्यत्व
योगमा आरोपण करीने योगने सत्य के असत्य गणवामां आवे छे. ५५. स्थूल व्यवहारना मते साचुं गणातुं वचन पण जो परपीडा- जनक बने
तो निश्चयनयना मते असत्य ज गणाय छे. ७६. जीव सम्यक्त्व पामे त्यारे मति-श्रुतज्ञान पण मेळवे छे अने सम्यक्त्व
गुमावे ते साथे मति-श्रुतने पण गुमावी दे छे. आम सम्यक्त्व साथे आ ज्ञानोनो अन्वय-व्यतिरेक होवाथी आ ज्ञाननां आवारक कर्मोने स्थूल व्यवहारनयथी सम्यक्त्वना पण आवारक गणवामां आवे छे.
आवी ज बीजी केटलीक सरस प्ररूपणाओनी सामान्य नोंध - गाथा विशेष वात
१ थी १४ प्रकारे जीवोनुं वर्णन १४ गुणस्थाननुं वर्णन ५६ अन्तर्वीपो, १० कल्पवृक्षो, ९ प्रकारना आर्यो, २५।। आर्यदेशो, म्लेच्छो व. नुं वर्णन ओकेन्द्रिय-विकलेन्द्रियोमां मळता सास्वादन गुणठाणानो घणी जग्याओ
अनुल्लेखनुं कारण २६-३६ विविध प्रकारनां पृथ्वी, मणि, पाणी, अग्नि, वायु अने वनस्पतिओनो
परिचय ४५-४७ संवृत-विवृत, सचित्त-अचित्त, शीत-उष्ण व. योनि-प्रकारोनुं वर्णन
त
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org