Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ ओगस्ट - २०१३ ७९ स्वाध्यायः शिवदासकृत ‘कामावती' (ई. १५१७) मा आवती समस्याना अर्थनी समस्या ___ - हसु याज्ञिक संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने प्राचीन के जूनी गुजराती कथासाहित्यनुं 'समस्या' अत्यन्त रसप्रद अभ्यास, अङ्ग छे. कालनिर्गमक रसिक आ अङ्ग काव्यत्वने पण कवचित् सिद्ध करे छे. जैन स्रोतनी कथाकृतिओनुं तो आ अत्यन्त महत्त्वनु अङ्ग छे. तेमां पण जयवंतसूरिकृत 'रसमञ्जरी' (१६७०)मां तो कदाच कोई पण कृतिमां नथी ओवी - अटला प्रकारनी विदग्ध समस्या/ प्रहेलिका/प्रश्नोत्तर/पृच्छादि छे. आवी समस्याना अर्थ लगभग बधी ज हस्तप्रतोमां ज आपेलां होय छे. विशेष संख्यामां समस्या शामळे आपी छे अने तेना अर्थ पण आपेला छे. परन्तु शामळथी २०० वर्ष पहेला शिवदास नामनो अत्यन्त तेजस्वी पद्यवार्ताकार थयेलो, ओणे 'कामावती' अने 'हंसा-चारखण्डी'नी रचनाओ आपी. आमां 'कामावती'मां क्रमाङ्क ८०५ थी ८२०मां कुल १७ समस्याओ छे. विविध सन्दर्भे आ समस्याओ रसप्रद अने अभ्यासयोग्य छे. परन्तु हस्तप्रतमां अर्थ न होवाथी केवळ अटकळ करवी पडे छे. सन्दर्भ अवो छे चित्रान्गद राजाओ कामावतीने एकदंडिया महेलमां केद करी छे. अनो पति करण रात्रे घोडो लई झरूखा नीचे आवे छे: राहमां ज करणने जोकुं आवी गयुं ने अक चोरे घोडो हाथ करी लीधो. कामावती झरूखामांथी नीचे ऊतरी. अन्धकारना कारणे चोरने ज पति मानीने घोडा पर बेसी. मूढ चोर मौन रह्यो. रात ने वाट खूटाडवा कामावतीओ १६ समस्या पूछी. मूढ चोर उत्तर आपी न शक्यो. हस्तप्रतमां पण अर्थ नथी. तो चालो, आ निमित्ते आपणे उकेलवानो, अटकळ करवानो सहियारो प्रयत्न करीओ : [वायक कहुं ते मन धरो, सांभलो स्वामीराय नयणे निद्रा का भरो ? जागो, कहुं दुहाय. (८०४)] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138