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ओगस्ट - २०१३
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स्वाध्यायः शिवदासकृत ‘कामावती' (ई. १५१७) मा आवती
समस्याना अर्थनी समस्या
___ - हसु याज्ञिक
संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने प्राचीन के जूनी गुजराती कथासाहित्यनुं 'समस्या' अत्यन्त रसप्रद अभ्यास, अङ्ग छे. कालनिर्गमक रसिक आ अङ्ग काव्यत्वने पण कवचित् सिद्ध करे छे. जैन स्रोतनी कथाकृतिओनुं तो आ अत्यन्त महत्त्वनु अङ्ग छे. तेमां पण जयवंतसूरिकृत 'रसमञ्जरी' (१६७०)मां तो कदाच कोई पण कृतिमां नथी ओवी - अटला प्रकारनी विदग्ध समस्या/ प्रहेलिका/प्रश्नोत्तर/पृच्छादि छे. आवी समस्याना अर्थ लगभग बधी ज हस्तप्रतोमां ज आपेलां होय छे. विशेष संख्यामां समस्या शामळे आपी छे अने तेना अर्थ पण आपेला छे. परन्तु शामळथी २०० वर्ष पहेला शिवदास नामनो अत्यन्त तेजस्वी पद्यवार्ताकार थयेलो, ओणे 'कामावती' अने 'हंसा-चारखण्डी'नी रचनाओ आपी. आमां 'कामावती'मां क्रमाङ्क ८०५ थी ८२०मां कुल १७ समस्याओ छे. विविध सन्दर्भे आ समस्याओ रसप्रद अने अभ्यासयोग्य छे. परन्तु हस्तप्रतमां अर्थ न होवाथी केवळ अटकळ करवी पडे छे. सन्दर्भ अवो छे चित्रान्गद राजाओ कामावतीने एकदंडिया महेलमां केद करी छे. अनो पति करण रात्रे घोडो लई झरूखा नीचे आवे छे: राहमां ज करणने जोकुं आवी गयुं ने अक चोरे घोडो हाथ करी लीधो. कामावती झरूखामांथी नीचे ऊतरी. अन्धकारना कारणे चोरने ज पति मानीने घोडा पर बेसी. मूढ चोर मौन रह्यो. रात ने वाट खूटाडवा कामावतीओ १६ समस्या पूछी. मूढ चोर उत्तर आपी न शक्यो. हस्तप्रतमां पण अर्थ नथी. तो चालो, आ निमित्ते आपणे उकेलवानो, अटकळ करवानो सहियारो प्रयत्न करीओ :
[वायक कहुं ते मन धरो, सांभलो स्वामीराय नयणे निद्रा का भरो ? जागो, कहुं दुहाय. (८०४)]
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