Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 90
________________ ओगस्ट - २०१३ विशेष रूप से मुनि आचार की विस्तृत विवेचना है । आचाराङ्ग और सूत्रकृताङ्ग के अतिरिक्त अङ्गआगमों में तीसरे और चौथे अङ्गआगम स्थानाङ्ग और समवायाङ्ग का क्रम आता है । ये दोनों ग्रन्थ संख्या के आधार पर निर्मित जैन विद्या के कोषग्रन्थ कहे जा सकते है। इनमें विविध विषयों का संकलन है । यह सत्य है कि इनमें कुछ दार्शनिक विषय भी समाहित किये गये हैं। किन्तु ये दोनों ग्रन्थ दार्शनिक विषयों के अतिरिक्त जैन सृष्टिविद्या, नक्षत्रविद्या एवं खगोल-भूगोल आदि से भी सम्बन्धित है। पांचवे अङ्ग आगम के रूप में भगवतीसूत्र का क्रम आता है । निश्चय ही यह ग्रन्थ जैन दार्शनिक मान्यताओं और विशेष रूप से तत्त्वमीमांसीय अवधारणाओं का आधारभूत ग्रन्थ है । अङ्गआगमों में भगवतीसूत्र के पश्चात् ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, प्रश्नव्याकरणसूत्र और विपाकदशा का क्रम आता है। सामान्यतया देखने पर ये सभी ग्रन्थ जैन साधको के जीवनवृत्त और उनकी साधनाओं को ही प्रस्तुत करते है। फिर भी उपासकदशा में श्रावक के आचार नियमों का विस्तृत विवेचन उपलब्ध हो जाता है। इसी प्रकार प्रश्नव्याकरणसूत्र भी वर्तमान विषय-वस्तु पांच आश्रवद्वारों और संवरद्वारों की चर्चा करता है, जो जैन आचारशास्त्र की मूलभूत सैद्धान्तिक अवधारणा से सम्बन्धित है। अन्य दृष्टि से आश्रव और संवर जैन तत्त्वयोजना के प्रमुख अंग है । इसी दृष्टि से इस अङ्ग का सम्बन्ध भी जैन तत्त्वमीमांसा से जोड़ा जा सकता है । विपाकसूत्र के अन्तर्गत दो विभाग है - सुखविपाक और दुःखविपाक । यह ग्रन्थ यद्यपि कथारूप ही है, फिर भी इसमें व्यक्ति के कर्म का परिणामों का चिन्तन होने से इसे एक दृष्टि से जैन दार्शनिक साहित्य से सम्बन्धित माना जा सकता है। जहाँ तक उपाङ्ग साहित्य का प्रश्न है, उसके अन्तर्गत निम्न १२ ग्रन्थ आते है – इनमें औपपातिकसूत्र और राजप्रश्नीयसूत्र ये दो ग्रन्थ ऐसे है जिनमें क्रमशः संन्यासियों का साधना के विभिन्न रूपों का एवं आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है । अतः ये दोनों ग्रन्थ आंशिक रूप से जैन दार्शनिक माने जा सकते हैं । सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ये तीन ग्रन्थ मुख्य रूप से जैन खगोल और भूगोल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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