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अनुसन्धान-६२
अव्ययार्थ-सङ्ग्रहः
- सं. म. विनयसागर
डॉ. नारायणशास्त्री काङ्कर, विद्यालङ्कार आचार्यप्रवर श्रीजिनभद्रसूरिजी महाराज ने खम्भात, पाटन आदि स्थानों के खरतरगच्छीय ज्ञानभण्डारों में से कुछ ग्रन्थों को लाकर शुष्क प्रदेश मरुस्थल जैसलमेर में संवत् १४९७ के आस-पास जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार की स्थापना की थी। उस समय उनका समस्त शासन/समुदाय तथा प्रतिलिपिकार ज्ञानभण्डार को समृद्ध करने में लगे थे । आचार्य और उनके साधुगण लिखापित प्रतियों का संशोधन भी करते थे । उस समय में संवत् १५११ चैत्र वदी बारस रविवार को किसी विद्वान ने इस ग्रन्थकी प्रतिलिपि की थी। कागज की प्रतिलिपि होने के कारण पत्र पाँच, प्रत्येक पृष्ठ पर पङ्क्ति सत्रह
और प्रत्येक पङ्क्ति में अक्षर अड़तालीस के लगभग हैं । इसकी साइज पौने ग्यारह और साढे चार है ।
अव्यय पदों का संग्रह जैसे अमरकोष में किया गया है वैसे ही अन्य अभिधानचिन्तामणिनाममाला, अनेकार्थसंग्रह, विश्वप्रकाशकोष, मेदिनीकोष आदि में भी संभवत: किया गया है ।
प्रस्तुत अव्ययार्थ-संग्रह अपने आप में कुछ विशिष्ट ही है क्योंकि इसमें अव्ययों का तो अर्थ किया ही गया है किन्तु उन अव्ययों के साथ प्रयुक्त स्थल भी दृष्टान्त के रूप में दिये गये हैं जिससे कि अध्येता वर्ग को समझने में सहायता मिलती है ।
सभी अव्यय श्लोकबद्ध किये गए हैं किन्तु साथ में दृष्टान्त प्रस्तुत करने से उनकी श्लोकबद्धता प्रतीत नहीं होती है । पाठकों के अध्ययन के लिए यह प्रस्तुत है -
___ अव्ययार्थसङ्ग्रहः स्वरादिरव्ययं चादेरस्त्वे(रसत्त्वे)क्त्वातुमं गतिः । कात्प्राग्वदादिरूादिच्चिडाखाट प्रादयो गतिः ॥१॥
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