Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ ओगस्ट २०१३ श्रीमण्डपीयसङ्घप्रशस्तिः सं. मुनि सुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजयौ खरतरवसहीनी सामेनी बाजु 'शणगारवसही' तरीके चैत्यपरिपाटीओमां नोंधायेलुं जिनालय, घणा समय पछी संप्रतिमहाराजाना जिनालय तरीके प्रसिद्ध थयुं. ते जिनालय खम्भातना हरपतिसाहना पुत्र व्यवहारी शणगारे के शाणराजे अने संघवी भूभवे बंधाव्यानुं नोंधायेलुं छे. सं. १५०९मां बृहत्तपागच्छीय जयतिलकसूरिजीना शिष्य रत्नसिंहसूरिजीओ तेनी प्रतिष्ठा करी. मूळनायकजी सम्बन्धी तथा प्रस्तुत जिनालय सम्बन्धी ऐतिहासिक घणी बाबतोनी नोंध आणंदजी कल्याणजी पेढीओ प्रकाशित करेल 'महातीर्थ उज्जयन्तगिरि' पुस्तकमां छे. (ले. डॉ. मधुसूदन ढांकी) ц त्यार पछी भट्टारक रत्नसिंहसूरिजीना शिष्य उदयवल्लभसूरिजी नी प्रेरणाथी माण्डवगढना श्रीसङ्घ ते प्रासादनो (?) मण्डप (रंगमण्डप के नृत्यमण्डप) नवो बनाव्यो हशे के जीणोद्धार कर्यो हशे प्रस्तुत प्रसङ्ग पछीथी कदाच आ प्रशस्तिनी रचना थई हशे . अलबत्त, आ प्रशस्तिना केटलाक श्लोको सं. १५२५मां संग्राम सोनी गिरनार तीर्थ उपर बनावेल (?) श्रीनेमिनाथ जिनालयनी ज्ञानसागरसूरिजी कृत 'श्रीनेमीश्वर जिनप्रासाद प्रशस्ति'ना श्लोको साथे मळे छे. आ प्रशस्ति पं. लाभसागर गणि द्वारा संशोधित थईने आगमोद्धारक ग्रन्थमाळा तरफथी प्रकाशित थई छे. अत्रे ते प्रशस्तिगत समान श्लोकोनी, क्रमाङ्क अने पाठान्तर साथेनी नोंध टिप्पणमां करी छे. 'मु.प्रश.' अथी संज्ञाथी आ प्रशस्तिने टिप्पणमां निर्देशी छे. प्रशस्तिना कर्ता - तेनो रचना काळ वगेरे बाबतो उपर कोई प्रकाश करे ते अपेक्षा छे. Jain Education International माण्डवगढना सम्बन्धमां अवुं पण जाणवा मळ्युं छे के 'मांडु नामे ओळखाता, विन्ध्याचल पर्वतना शिखर माण्डवदुर्गमां अगाउ ७०० जिनमन्दिरो अने पौषधशाळाओ हती. छ लाखथी वधु जैनोनी वस्ती हती. अहीं जे नवो जैन आवे तेने दरेक जैनना घरमांथी अक सोनामहोर अने ओक इंट अपाती. ' For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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