Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ सप्टेम्बर २०१० श्रीनयविजयगणिकृता श्रीभक्तामरस्तवावचूर्णिः॥ ___ सं. विजयशीलचन्द्रसूरिः १२ पानांनी प्रतिनी फोटोकोपी उपरथी सम्पादित आ भक्तामर-स्तवनी अवचूर्णि अहीं प्रकाशित थाय छे. प्रत द्विपाठ छे, एटलेके पानांना एक भागमां मूळ स्तोत्रकाव्योनो पाठ लखेल छे, अने बाकीना भागमां अवचूणि लखेल छे. अवचूर्णिना रचयिता तथा प्रतिना लेखक गणिश्री नयविजयजी छे, ते तेनी पुष्पिका परथी स्पष्ट छे. तेमनो सत्ताकाल १७मो-१८मो शतक छे. प्रसिद्ध उपाध्याय श्रीयशोविजय गणिना तेओ गुरु हता. तेमणे पोताना समुदायना गणि मुक्तिविजयजीना अध्ययन माटे आ टीका रची छे. अवचूणिनो मुख्य उद्देश व्युत्पत्ति होय तेम जणाय छे. केमके प्रत्येक पद्यना समासवाळां पदोना समासो तेमणे आमां खोली बताव्या छे. पण ए सिवायनी बीजी बधी व्याकरणआधारित प्रक्रियामां ऊंडा ऊतर्या नथी, ते पण, आ सन्दर्भमां ध्यानार्ह छे. भक्तामर जेवं लघु काव्य अभ्यासीओ माटे व्युत्पत्तिबोध खीलववानुं मजार्नु साधन हतुं ते आ अने आवी अन्य वृत्तिओ परथी जाणी शकाय छे. आ प्रति प्रायः मित्र मुनिराज श्रीधुरन्धरविजयजी महाराजना ग्रन्थसंग्रहमां हती, अने तेमणे आ फोटा लेवानी संमति वर्षो अगाऊ आपी छे तेवू स्मरण छे. तेओनो ऋणस्वीकार करुं छु. शुद्धवंतीनगर ते राजस्थानमा ‘सोजतसिटी' तरीके जाणीतुं गाम हशे? जाणकारो प्रकाश पाडे तेवी अपेक्षा. श्रीभक्तामरस्तववृत्तिः ॥ सकलपण्डितसार्वभौम पण्डित श्री ५ श्रीलाभविजयगणिगुरुभ्यो नमः ॥ भक्ताऽमरप्रणतमौलिमणिप्रभाणामद्योतकं दलितपापतमोवितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादावालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ॥१॥

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