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विहंगावलोकन
अनुसन्धान ५२
उपा. भुवनचन्द्र
‘अनुसन्धान’नो ५०मो अंक श्रुतस्थविर विद्वद्वरेण्य पूज्य मुनिप्रवर श्री जम्बूविजयजी म.नी स्मृति रूपे बे भागमां प्रकाशित थाय ए एक अपूर्व जोगानुजोग छे. आ विश्वविश्रुत श्रुतधर महापुरुषने योग्य ज्ञानाञ्जलि आ रीते अपाई छे.
विशेषाङ्कना प्रथम भागमां भक्तामर स्तोत्रविषयक त्रण अप्रगट रचनाओ प्रकाशित छे. शान्तिसूरि रचित वृत्ति सम्पादकनी धारणा अनुसार बारमा शतक पहेलानी छे. टीकाना प्रथम श्लोकथी सूचित थाय छे के शान्तिसूरिए अन्य स्तोत्रोनी पण टीकाओ रची छे.
आ टीकामां स्वीकृत पाठभेदने कारणे स्तोत्रमां पाठान्तर स्वीकारवा पडे एम छे, पण सर्वत्र एवं नथी. आ टीकामां करेला अर्थ वधारे संगत के महत्त्वपूर्ण पण जणाता नथी. श्लोक १४नुं विवरण जोवाथी आ स्थिति स्पष्ट जणाशे.
थोडां संशोधन
श्लो० ६ : टीकामां 'मुख' बे वार छे ते लिपिकारनी भूलथी आवेल छे. 'चसूरीस्थानम्' छे त्यां साचो शब्द "चस्तरीस्थानम्' होवो घटे, चस्तरी
निन्दा.
सम्भव छे.
श्लो० २३ : टीकामां '० न्यथा वचोधाम्' छे त्यां ‘०न्यथावबोधात्’ वांचवुं जोईए.
श्लो० ३० : टीका 'वपु इव (?)' नहि पण 'वप्र इव' होवानो
'भक्तामर'नी बीजी एक टीका पण आ अंकमां छपाई छे, एमां पण क्यांक अर्थघटन क्लिष्ट रीते करेलुं जणाय छे.
१. 'चसूरी' शब्द मात्सर्य तथा निन्दा अर्थमां स्याद्वादमञ्जरीमां प्रयुक्त छे. चस्तरीनो प्रयोग जोवा मळ्यो नथी. सं.