Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 117
________________ १०६ अनुसन्धान ५२ छे. ते समयनी शासकीय प्रणाली अने सामाजिक रीति विशे अधिकृत माहिती आवा दस्तावेजो ज आपी शके. संस्कृत-ऊर्दू-गुजराती-एम त्रणे भाषानुं मिश्रण आमां छे. मुस्लिम शासकोए पण आ देशनी संस्कृति-नीति परम्परानो आदर करवानुं योग्य गण्युं हतुं ए तथ्य पण आमांथी जणाइ आवे छे. श्री नगीनभाई जी. शाहे पोताना संशोधनलेखमां निराकार-साकार उपयोग अर्थात् दर्शनोपयोग-ज्ञानोपयोगनी विचारणा एक नूतन दृष्टिकोणथी करी छे अने जैन तत्त्वज्ञानना क्षेत्रे प्रवर्तती एक गूचना उकेल माटेनी भूमिका प्रस्तुत करी छे. 'बोले बांधनारनी कथाओ' शीर्षक लेखमां मुखोपमुख कहेवाती कथाओ अने ग्रन्थस्थ थयेल कथासाहित्यना मूळ अने प्रकारो विशे देशविदेशना कथा साहित्यना सन्दर्भमां विद्वत्तापूर्ण विचारणा थई छे. ___'अज्ञातकर्तृक प्रश्नगर्भ पंचपरमेष्ठिस्तव' एक पाण्डित्यपूर्ण विद्वज्जनभोग्य रचना छे. प्रश्नोना उत्तर रूपे जे शब्दो के अक्षरो मळे ते ज नवकारमन्त्रना पांच पदो बनी जाय एवी चातुर्यभरी योजना आ प्रश्नोमां करवामां आवी छे. संस्कृत भाषाना मुख्य बे स्वरूप जोवा मळे : एक आर्ष अथवा वैदिक संस्कृत अने बीजी साहित्यिक संस्कृत. ज्यारे प्राकृत भाषाओ अनेक छे तथा काले काले तेमां परिवर्तनो थतां रह्यां छे. माटे प्राकृत भाषाओमांथी कोई एकने मूळ भाषा न कही शकाय - आ बिन्दु परथी श्री सागरमल जैननो लेख ध्यानार्ह छे. आ ज लेखकनो बीजो लेख कंकाली टीलामांथी प्राप्त 'आर्यावती'नी प्रतिमा विशे छे. 'आर्यावती' ए सरस्वती ज एवो निष्कर्ष लेखक आपे छे. आ माटे एक आधार लेखकने भारतीय शिल्प-स्थापत्यना ग्रन्थमांथी अचानक प्राप्त थयो छे. संशोधनना क्षेत्रे संशोधके क्या क्यां नजर दोड़ाववी पडे छे एनो अन्दाज पण आ घटना आपी जाय छे. लता बोथरा तेमना लेखमां जैन अने हिन्दू परम्पराना व्रत-तपअनुष्ठानोनी तुलनात्मक तपास करे छे. बन्ने परम्परामां आदान-प्रदान आवी बाबतोमां थयुं छे अने आजे पण ए प्रक्रिया चालू छे ए हकीकतनी नोंध लेवी घटे, जेथी रूढि-विधिओना कारणे व्यर्थ विवादोथी बची शकाय.

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