Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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सप्टेम्बर २०१०
★ नंबर ( ४ ) ना सन्दर्भमां
पहेली विचारणामां नोंधेली उत्तराध्ययननी गाथा मूळद्रव्यनी संख्या जोडे ज निस्बत राखे छे. पर्यायो (=समयो) अनन्त होवाथी ज जो कालद्रव्यने अनन्त गणवानुं होय तो धर्म, अधर्म, आकाशना पर्यायो पण अनन्त ज छे, अमने शा माटे ओक गण्या ? स्पष्ट छे के आ गाथानी संगति माटे पुद्गल, आत्मानी जेम कालद्रव्यने ज अनन्त संख्यक मानवुं जरूरी छे. ★ नंबर (५) ना सन्दर्भमां
१३३
अनन्त पुद्गल परमाणुओने ओक ज आकाशप्रदेश पर समावा माटे स्कन्ध परिणामनी नहि, पण सूक्ष्मपरिणामनी जरूर पडे छे. मतलब के ओ सूक्ष्मरूपे परिणमी परस्परथी असम्बद्ध रहीने पण ओक आकाशप्रदेशमां समाइ शके छे. “परमाण्वादयो हि सूक्ष्मभावेन परिणता एकैकस्मिन्नप्याकाशप्रदेशेऽनन्तानन्ता अवतिष्ठन्ते ।" (राजवार्त्तिक ५/१० / ३) सीधी वात छे के 'अनन्त पुद्गलोने काल कहेवामां कालनो तिर्यक्प्रचय मानवो पडशे' आ आपत्ति कोइ रीते घटी शकती नथी.
'व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तिः' आ न्याय जगजाहेर छे, अने अने अनुसरीने उपा. यशोविजयजी, बधा ज विरोधो दूर थाय ते रीते श्रीहेमचन्द्राचार्यनां वचनोनो अर्थ करे, तो तेम करवानो अ महाप्रज्ञने अधिकार छे ज. आ अर्थने त्यारे ज अप्रमाणित कही शकाय के ज्यारे अमां रहेली क्षति दर्शावी शकाय, अ सिवाय नहीं. व्याख्यान जटिल लागे तो भले लागे, पण ओ कंइ अना अस्वीकारनुं कारण न बनी शके. बाकी, घणाय ग्रन्थोना व्याख्यानकारो एकबीजाना व्याख्यानने जटिल क्यां नथी गणावता ? अने छतांय अमां कयुं स्वीकारवुं ते आपणी विवेकबुद्धि पर निर्भर होय छे.
★ नंबर (६) ना सन्दर्भमां
उपा. श्रीयशोविजयजीनां वचनोनो अर्थ 'कालने द्रव्य तरीके स्वीकारनारा आचार्यो कालनुं कोइ कार्य नथी मानता' ओम नथी; पण आम समजवानुं छे : कालने स्वतन्त्रद्रव्य तरीके स्वीकारनारा श्वेताम्बर आचार्योना मते - वर्तना छे, माटे तेनुं कारण काल छे आम कालद्रव्यनो आपेक्षिक स्वीकार नथी, परन्तु अनादिलोकव्यवहारसिद्ध द्रव्य तरीके कालनो स्वीकार करीने पछी तेना कार्य

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