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________________ सप्टेम्बर २०१० ★ नंबर ( ४ ) ना सन्दर्भमां पहेली विचारणामां नोंधेली उत्तराध्ययननी गाथा मूळद्रव्यनी संख्या जोडे ज निस्बत राखे छे. पर्यायो (=समयो) अनन्त होवाथी ज जो कालद्रव्यने अनन्त गणवानुं होय तो धर्म, अधर्म, आकाशना पर्यायो पण अनन्त ज छे, अमने शा माटे ओक गण्या ? स्पष्ट छे के आ गाथानी संगति माटे पुद्गल, आत्मानी जेम कालद्रव्यने ज अनन्त संख्यक मानवुं जरूरी छे. ★ नंबर (५) ना सन्दर्भमां १३३ अनन्त पुद्गल परमाणुओने ओक ज आकाशप्रदेश पर समावा माटे स्कन्ध परिणामनी नहि, पण सूक्ष्मपरिणामनी जरूर पडे छे. मतलब के ओ सूक्ष्मरूपे परिणमी परस्परथी असम्बद्ध रहीने पण ओक आकाशप्रदेशमां समाइ शके छे. “परमाण्वादयो हि सूक्ष्मभावेन परिणता एकैकस्मिन्नप्याकाशप्रदेशेऽनन्तानन्ता अवतिष्ठन्ते ।" (राजवार्त्तिक ५/१० / ३) सीधी वात छे के 'अनन्त पुद्गलोने काल कहेवामां कालनो तिर्यक्प्रचय मानवो पडशे' आ आपत्ति कोइ रीते घटी शकती नथी. 'व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तिः' आ न्याय जगजाहेर छे, अने अने अनुसरीने उपा. यशोविजयजी, बधा ज विरोधो दूर थाय ते रीते श्रीहेमचन्द्राचार्यनां वचनोनो अर्थ करे, तो तेम करवानो अ महाप्रज्ञने अधिकार छे ज. आ अर्थने त्यारे ज अप्रमाणित कही शकाय के ज्यारे अमां रहेली क्षति दर्शावी शकाय, अ सिवाय नहीं. व्याख्यान जटिल लागे तो भले लागे, पण ओ कंइ अना अस्वीकारनुं कारण न बनी शके. बाकी, घणाय ग्रन्थोना व्याख्यानकारो एकबीजाना व्याख्यानने जटिल क्यां नथी गणावता ? अने छतांय अमां कयुं स्वीकारवुं ते आपणी विवेकबुद्धि पर निर्भर होय छे. ★ नंबर (६) ना सन्दर्भमां उपा. श्रीयशोविजयजीनां वचनोनो अर्थ 'कालने द्रव्य तरीके स्वीकारनारा आचार्यो कालनुं कोइ कार्य नथी मानता' ओम नथी; पण आम समजवानुं छे : कालने स्वतन्त्रद्रव्य तरीके स्वीकारनारा श्वेताम्बर आचार्योना मते - वर्तना छे, माटे तेनुं कारण काल छे आम कालद्रव्यनो आपेक्षिक स्वीकार नथी, परन्तु अनादिलोकव्यवहारसिद्ध द्रव्य तरीके कालनो स्वीकार करीने पछी तेना कार्य
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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