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अनुसन्धान ५२
छपायुं छे. पण आगळ आवतां 'अस्तित्वं चाऽनपेक्षमित्युक्तं ' अ वचनने अनुसारे पाठशुद्धि करवी जोइओ.) प्रश्न पण थाय के ओक द्रव्यने पोताना कोइक धर्म, कोइक कार्य माटे बीजा द्रव्यनी सहाय लेवी पडे ओम बने, पण तेनुं अस्तित्व पण बीजानी सहाय वगर न होय अवुं बने खरुं ? अने जो दरेक वस्तुनुं अस्तित्व पण कालानुगृहीत होय तो कालना पोताना अस्तित्वने पण कालानुगृहीत समजवानुं ? अ ज रीते सूक्ष्मपरिणामरूप वर्तना तो स्वयं कालमां पण छे, तो ओ कालवर्तनामां पण काल उपकारक ? अने जो कालना अस्तित्व के सूक्ष्म-परिणामोमां उपकारक तरीके कालनी जरूर न होय, तो अन्य द्रव्योमां शा माटे जरूर पडे ?
कदाच आवुं विचारी शकाय : 'क्षणध्वंसे क्षणविशिष्टध्वंसः' अने 'क्षणोत्पादे क्षणविशिष्टोत्पादः' आ नियमोने अनुसारे प्रत्येक क्षणे वस्तुना उत्पाद-व्यय थया करे छे. आ उत्पाद - व्यय माटे वस्तु आधेयता सम्बन्धथी क्षण वडे विशिष्ट बने ते जरूरी छे. अने आ विशिष्टता ज्यां कालनुं अस्तित्व होय त्यां ज सम्भवे, नहीं के बधे. हवे आ वातने जराक जुदी दृष्टिथी विचारीओ तो वस्तुना उत्पत्ति-विनाशजन्य परिवर्तनो सूक्ष्म परिणामो, बीजुं कशुं ज नहीं, पण वस्तुनी ते-ते क्षणमां वृत्ति (= रहेवुं ) ज छे. आ क्षणविशिष्ट (= कालाश्रित) वृत्तिओने ज कदाच श्रीसिद्धसेनगणि 'वर्तना' तरीके ओळखाववा मांगे छे. आम विचारवामां बे फायदा छे : १. ज्यां ज्यां वर्तना=सूक्ष्म परिणमन), त्यां त्यां कालनुं अस्तित्व आवी आपत्ति आवती नथी, कारण के वृत्ति वर्तना बने के नहीं - तेनो नियंत्रक काल पोते छे. २. कालनी वर्तनामां पण कालने उपकारक मानवानी जरूर रहेती नथी. अभ्यासीओने आ दृष्टि समग्र टीका तपासवा विनन्ती छे.
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★ नंबर (३) ना सन्दर्भमां
कालद्रव्य तरीके अलग कालाणुओनी कल्पना करवामां जो काल कालाणु पूरतो सीमित न थइ जतो होय तो अनन्त पुद्गल परमाणुओने उपचारथी कालाणु मानवामां काल शी रीते पुद्गलोमा सीमित थई जाय ? अलग कालाणु मानो के पुद्गल परमाणुओने कालाणु गणो तज्जन्य प्रवृत्ति व्यवहारो व. सरखुं ज छे.