Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 120
________________ सप्टेम्बर २०१० १०९ नवांप्रकाशनो १. जयवंतसूरिनी छ काव्यकृतिओ सं. जयंत कोठारी; प्र. गूर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय, अमदावाद; ई. २०१० ___ सोळमी शताब्दीना एक मातबर जैन साधु-कवि आचार्यश्री जयवंतसूरिए रचेली छ रचनाओनी सम्पादित वाचना अने ते उपर शब्दकोशो-समेत अभ्यास/ परिचय-लेखो समावतुं आ पुस्तक, मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासीओ, जिज्ञासुओ तथा संशोधको माटे श्रेष्ठ मार्गदर्शक पाठ्यग्रन्थनी गरज सारनारु पुस्तक छे. जयंतभाई कोठारी आपणा, मध्यकालीन साहित्यना मूर्धन्य अभ्यासी अने तज्ज्ञ विद्वान हता. तेमना गया पछी तेमनी स्थानपूर्ति करी शके तेवा कोई विद्वान आज सुधी तो उपलब्ध नथी थया. तेओनी खोट सतत अने विशेष साल्या करती होय, त्यारे तेमना द्वारा सम्पादित कृतिओनो आवो सरस संचय, हर्ष तो आपेज छे, पण तेथी वधु ते आपणने आश्वस्त करे छे के जयंतभाईनां सम्पादनो हजी आपणी वच्चे विद्यमान छे. २. विवेकमञ्जरी (सटीका), भाग १-२ कर्ता : आसड कवि; टीकाकार : आ. बालचन्द्रसूरि; सं. पं. हरगोविन्ददास, पुनः सं. साध्वी चन्दनबालाश्री. प्र. श्रुतरत्नाकर, अमदावाद; ई. २०१०, सं. २०६६ नवेक दायका पूर्वे वाराणसीथी प्रत-आकारे आ ग्रन्थ मुद्रित थयेलो. पं. हरगोविन्ददासे विविध हस्तप्रतोना आधारे तेनुं सम्पादन कर्यु हतुं. तेनुं ज आ पुनः मुद्रण छे. नवेसरथी कम्पोझ करावी प्रूफवाचन जाते करीने पुस्तककारे बे भागरूपे सुवाच्य टाईप (अक्षर)मां साध्वीश्रीए आ मुद्रण कराव्युं छे. केटलांक उपयोगी परिशिष्टो पण नवां बनावी मूक्यां होई ग्रन्थ वधु समृद्ध बन्यो छे. प्रूफवाचनमां हजी वधु चीवट रखाय तो वधु शुद्धि थई शके.

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