Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 115
________________ १०४ गई छे. ढाल 'सुणी देशना .... ' थी शरू थाय छे. शब्दकोश : १८२ २०८ २१२ खुप पृष्ठ ७ ८ ९ ९ उंखालपुंखाल सधइणा ९ ११ १५ ५०मा अंकनो द्वितीय भाग २५० थी वधु पृष्ठ धरावे छे अने देश उपरांत विदेशना पण विद्वानोए पू. श्रुतस्थविरने अंजलिरूपे लखेला लेखोथी समृद्ध छे. संशोधित-सम्पादित प्राचीन कृतिओ पण पर्याप्त छे. 'पुण्यबत्रीसी'नी आठमी कडीमां 'चादरि' छे त्यां कक्काना क्रम प्रमाणे जकारवाळा शब्दो साथे चकार वाळो न होय, तेथी 'जादरि' शब्दनी कल्पना करवी रही; जोके आनो अर्थ अस्पष्ट रहे छे. 'गूढार्थका दोहा', 'जवनका दोहा' वगेरे संग्रहमां साहित्यरसना पोषक दूहा-कवित वगेरेनो स-रस संग्रह थयो छे. जूना लोको साहित्यरस अ मनोरंजन-बुद्धिविकास - व्यवहारकौशल्य आवा साहित्य प्रकारो द्वारा मेळवता. थोडी पाठशुद्धि : पंक्ति स्त्रीओनुं मस्तक पर पहेरवानुं एक आभूषण, खूप, मोड़ 'चोळी चोळीने' जेवो अर्त संभवे सद्दहणा-श्रद्धा. ६ (नीचेथी) १२ (नीचेथी) ८ (नीचेथी) ५ (नीचेथी) १ (नीचेथी) ७ (उपरथी) ११ (नीचेथी) अनुसन्धान ५२ अशुद्ध मोपाला बेह विधा भेट यमित ता सगूर युग्दल शुद्ध भोपाला छेह पीधा मेट पण्डित तास गूर पुद्गल

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