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गई छे. ढाल 'सुणी देशना .... ' थी शरू थाय छे.
शब्दकोश :
१८२
२०८
२१२
खुप
पृष्ठ
७
८
९
९
उंखालपुंखाल
सधइणा
९
११
१५
५०मा अंकनो द्वितीय भाग २५० थी वधु पृष्ठ धरावे छे अने देश उपरांत विदेशना पण विद्वानोए पू. श्रुतस्थविरने अंजलिरूपे लखेला लेखोथी समृद्ध छे. संशोधित-सम्पादित प्राचीन कृतिओ पण पर्याप्त छे.
'पुण्यबत्रीसी'नी आठमी कडीमां 'चादरि' छे त्यां कक्काना क्रम प्रमाणे जकारवाळा शब्दो साथे चकार वाळो न होय, तेथी 'जादरि' शब्दनी कल्पना करवी रही; जोके आनो अर्थ अस्पष्ट रहे छे.
'गूढार्थका दोहा', 'जवनका दोहा' वगेरे संग्रहमां साहित्यरसना पोषक दूहा-कवित वगेरेनो स-रस संग्रह थयो छे. जूना लोको साहित्यरस अ मनोरंजन-बुद्धिविकास - व्यवहारकौशल्य आवा साहित्य प्रकारो द्वारा मेळवता.
थोडी पाठशुद्धि :
पंक्ति
स्त्रीओनुं मस्तक पर पहेरवानुं एक आभूषण, खूप, मोड़
'चोळी चोळीने' जेवो अर्त संभवे
सद्दहणा-श्रद्धा.
६ (नीचेथी)
१२ (नीचेथी)
८ (नीचेथी)
५ (नीचेथी)
१ (नीचेथी)
७ (उपरथी)
११ (नीचेथी)
अनुसन्धान ५२
अशुद्ध
मोपाला
बेह
विधा
भेट
यमित
ता सगूर
युग्दल
शुद्ध
भोपाला
छेह
पीधा
मेट
पण्डित
तास गूर
पुद्गल