Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
७४
अनुसन्धान ५२
पुरुषार्थनुं प्रतिपादन करीने ३'अन्योन्याप्रतिबन्धेन त्रिवर्गमपि साधयन्' आ गुण लोकोना जीवनव्यवहारमा सुपेरे वणायेलो छ अर्बु दर्शाव्यु छे. 'नगरीने निहाळता मेषोन्मेष मळता नथी' (१/१८) आq कडं, मेषोन्मेष तो देवोना न मळे, अटले के आ नगरीनुं दर्शन करनार पोते देवलोकमां छे अq अने लागतुं हशे. अर्थात् आ चम्पानगरी देवनगरी जेवी सुन्दर अने सुशोभित छे..
ढाल-२, कडी- ६ थी १३ वनखण्डनुं वर्णन करती वेळाओ अहीं अटलुं सुसूक्ष्म निरूपण थयुं छे के जेना द्वारा वनखण्डनुं सम्पूर्ण शब्दचित्र चितराई जाय छे. 'कुसुमने भार नमी तरु डाल' (ढा. २/१६) लची पडेला फळोना भारे तो डाळीयो नमी जाय, परन्तु अहीं पुष्पोना भारथी डाळीयो नमी गई छे. डाळीओ-डाळीओ केटलां बधां पुष्पो हशे? आपणे मात्र आंखो मीचीने निहाळीओ, आटलां बधां पुष्पोनी हाजरी वातावरणने परिमल-पूर्ण बनावी देती
हशे.
'वन शुभ शोभाथी, लज्जाणुं नन्दन, सुरगिरि सेवे रे,
ओ वन जोता सुर अनीमेष, वीर ते उपम देवे रे.' (ढा. २/२२) वनखण्डनी शोभा जेटली बधी छे के जेने जोईने नन्दनवन शरमाई गयुं अने ठेठ मेरु पर जईने पोतानु मुख संताडी दीधु. देवोनी आंख पहेला मीचाइ जती हशे, आ वन-दर्शनथी ओमनी आंखो मीचावानुं भूली गइ. त्यारथी देवो अनिमेष कहेवाया हशे. आम कहीने वनशोभाना चित्रने उत्प्रेक्षानी सोनेरी फेममां मढ्युं छे.
ढाल-३ मां परमात्माना प्रत्येक अंगने प्राकृतिक उपमाओ आपीने कवि जणावे छे के प्रभुनो प्रकृति साथेनो सुमेळ, प्रेम अने प्रकृतिकल्याणनी भावना अद्भुत छे.
ढाल-४ दूहा-४/५ 'पहेला प्रभु ओकला हता तो य मारु निकन्दन काढी नाख्युं हतुं, हवे तो विशाळ मुनिसैन्यनी साथे आवी रह्या छे. आ समाचार सांभळीने भयथी कंपती निद्रा लोको पासेथी भागी गइ.' 'प्रभुना आगमननी राह जोता लोकोने निद्रा आवती नथी.' आ सामान्य हकीकत सजाववा सजीवारोपणनुं घरेणुं वापर्यु छे. निद्रा भयभीत थईने बिचारी भागी गई-आ सांभळतां करुणरसनी ३. कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितम् योगशास्त्रम् - १/५२.

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146