Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ५२
वीस काउसग भेद न फेर, जमले अकसो सित्तेर । उपदेश करे अणगार, आक्षेपणी आदि च्यार ॥७॥ ध्यान कोठे रह्या मुनिराज, संसार तरे व्रत झाज । शिवपंथे चले निज आथे, प्रभु सारथवाहनी साथे ॥८॥ नवकमल उपर संचरिया, मुनि परिवारे परिवरिया । प्रभु समवसर्या सुखकार, पूरण-भद्र चैत्य मोझार ॥९॥ रच्यु समवसरण ततखेव, मली च्यार निकायना देव । बार पर्षद हर्ष उजाणी, सुंणवा शुभवीरनी वाणी ॥१०॥
सूत्र - १८-२१
॥ दूहा ॥ सुरवर च्यार निकायना, वर्णादिक सुविशेस । ते वर्णव सूत्रे लह्यो, ग्रन्थ बहुल न कहेसि ॥१॥ प्रभु आव्या पुर परिसरें, निसुंणी चम्पा लोक । कोलाहल वचने थयो, त्रिक-चच्चर ने चोक ॥२॥
७ सर्वगाथा ॥११७॥ ढाल - श्री युगमन्धिरने कहेज्यो ॥ ओ देशी ॥ बोले जिनवन्दन कामी, जन अक अकने शिरनामी । समवसर्या अरिहा स्वामी रे ॥१॥ चम्पावन सुरतरू फलियो, शिवपुर सारथवाह मलिओ रे ॥ चंपा० ॥ दर्शन नयनांजन वरिइं, तत्त्व वचन श्रवणे धरिइं । वन्दन नमन स्तवन करिई रे ॥२॥ चंपा० ॥ दुरित समावणनें काजें, ईह भव सुख दुखडां धूजे । ईष्ट देव पडिमा पूजें रे ॥३॥ चंपा० ॥ तिम प्रभु पद सेवा करस्युं, मिथ्यामल दूरे हरस्यूं । ईह पर भव सुख अनुसरस्यूं रे ॥४॥ चंपा० ॥ ब्राह्मण क्षत्री भट जोहा, ईभ्य कुटम्बिक संवाहा । सेठ सेनापति सथवाहा रे ॥५॥ चंपा० ॥

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