Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 104
________________ सप्टेम्बर २०१० सूरीकन्ताइं रे कन्त विर्षे हण्यो, चुलणी अंगज दाहो रे । श्रेणीक राजा रे कठ पंजर पड्यो, जुओ संसार सनेहो रे ॥७॥ चेतन० ॥ धनद निपाइ रे द्वीपायन दही, जल विण हरि अकेला रे । इंणे संसारे रे ओ सुख सम्पदा, कुशजल जलनिधि वेला रे ॥८॥ चेतन० ॥ भवजल ममता रे तंतुइं बांधियो, चेतन हाथी महंतो रे । मोक्षानन्दी रे निकलवु भनें, लही संयम जलकंतो रे ॥९॥ चेतन० ॥ आयु अन्त्य समय शिवपद वली, साकारें गतकंखो रे । ओक अवगाहनें सिद्ध अनन्तता, देश प्रदेश असंखो रे ॥१०॥ चेतन० ॥ स्यात्पद लम्बित नय भंगे करी, देशन षट द्रव्यरूपो रे । सुणी लघुकर्मा रे संयमश्री वरें, केइ देशविरति अनूपो रे ॥११॥ चेतन० ॥ समकित पाम्यां रे केइ भद्रक पणुं, व्रत वेली रस गीद्धी रे । श्री शुभवीर प्रभुनी देशना, शान्त सुधारस पीधी रे ॥१२॥ चेतन० ॥ ॥ दूहा ॥ १३देशन सुणी नृप उठीयो, मन्दिर पहुतो जाम । गौतम प्रश्नोत्तर करी, प्रभु विचरन्ता ताम ॥१॥ सर्वगाथा ॥२०१॥ ढाल-११ राग-धन्यासी ॥ गायो गायो रे महावीर जिनेश्वर गायो, समकित व्रत निरमल इंम करज्यो, भविक मली निरमायो । नव जणे अरिहन्त भक्ति निपायो, जिनपद वीर पसायो रे ॥१॥ महावीर० ॥ प्रभु साम्हइयुं करत दशारण-भद्र ते केवल पायो । नेम मुनि नमतां निपजाव्यु, प्रभु पद कृष्ण कहायो रे ॥२॥ महावीर० ॥ भावस्तव रावण जिन भक्ति, नाटिक रंग भरायो । तंति कुं जोडत भवतति तोडत, चउदमें भव जिनरायो रे ॥३॥ महावीर० ॥ तिम भवि भाव धरी बलवीरय, फोरवतां शिव जायो । जिनशासन उद्योत करेज्यो, जिम जग कोणिक रायो रे ॥४॥ महावीर० ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146