Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 84
________________ सप्टेम्बर २०१० ७३ हेतु सुणस्युं, प्रश्न ते नयभंगे करस्युं, पूर्व सुणित निश्चल धरस्युं. उक्किट्ठि-सीहणाय-बोल-कलकलरवेणं पक्खुब्भिअ-महासमुद्द-रवभूतं पिव। - कलकल लोक शब्द करीइं, वेल वधे जिम भरदरिइं. ओसारिअ-जमल-जुअल-घंटे विज्जुपणद्धं व कालमेहं । - घण्टा युगल ते विजलीओ मेघ समो करी श्याम. कुंडल-उज्जोविआऽऽणणे । - कुण्डल मुख अजुआलता . कंचण-कोसी-पविट्ठ-दंताणं । - दन्त लघु कंचन मढ्या. पूज्य वीरविजयजीओ मात्र अनुवाद नथी कर्यो, परन्तु कल्पनाओना सुवर्ण रंगोथी अनुवादने काव्यत्वथी रंगी दीधो छे. (नीचेनी पंक्तिओ औपपातिकमां नथी, ते कविनी पोतानी कल्पना छे.) नख पग तलनी ज्योतिमा हारे रयण उदार. (ढा. ३/८) - साधुवेसे नवि कह्या, नहि गृहस्थने वेश । वेश अनन्ये जिनवरा, (ढा ३/११) भव दावानलमां भमी, ठोर ठोर अपमान । मोहरायने मारवा, करता मन्त्र विधान ॥ (ढा. ५/१) जिम रण थम्भ मनाक । (ढा. ८/५) मुख कज सेवन हंसिका । (ढा. ९/ दूहो-५) . ग्रहगणमां जिम चन्द / प्रथम परमानन्द । (ढा ९/३) - देव-देवी रवि चन्द्रमा जूई गगने रही ताम । (ढा. ९/२४) 'छंडी चपलता लक्षमी रही छे थिर थोभा' (ढा. १-१) अहीं 'चंचळ लक्ष्मी पण चम्पामां स्थिर थई गई' ओ कहेवा द्वारा नगरीनी समृद्धता अने रमणीयताने अति समृद्ध बतावी छे. कारण के पहेला लक्ष्मीने स्वयोग्य स्थान क्यांय मळतुं न हतुं माटे चंचळ हती, बधे फरती हती, अहीं आव्या पछी नगरीने निहाळीने अनुं मन त्यां ज स्थिर थई गयुं. 'घर श्रेणी उजलीओ' (ढा १-४) गृहपंक्तिनी उज्ज्वलता दर्शावीने जाणे के नगरवासीओनी चित्तवृत्तिओनी उज्ज्वलता ध्वनित करी छे. ढाल-१ कडी ३ थी ८ मां क्रमे करीने अर्थ, काम अने धर्म

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