Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 35
________________ अनुसन्धान ५२ आ प्रतिनुं लिप्यन्तर-संशोधन पूर्ण कर्या पछी ज्यारे मारा पू. गुरु म. (आ. श्री वि.सोमचंद्रसूरिजी म.)ने दृष्टिपात करवा माटे आपी त्यारे पूज्यश्रीए जणाव्यु के जेम इलादुर्ग-इडर, वटपद्र-वडोदरा, दर्भावती-डभोई, मुम्बादेवी-मुम्बई, भृगुकच्छ-भरुच, सूर्यपुर-सुरत, पत्तन-पाटण तेम देलुल्लापुर-देलवाडा होई शके! आभार सह पूज्यश्रीनी आ वात मनमां ठसी जाय तेम छे. ___पद्य १०ना प्रथम चरणमां जे 'भुवनभूषणभूत !' पाठ छे, तेमां भूतशब्द उपमावाची छे, तेवी स्पष्टता ध्यान देवा योग्य छे. पद्य ११नुं चोथु चरण 'जलनिधे रसितुं क इच्छेत् ?' ए प्रमाणे प्रसिद्ध छे. परन्तु अवचूरिमां स्पष्टतया 'जलमऽशितुं स्वादितुं' ए प्रमाणेनो पाठ छे. मुद्रित विवृत्तिटीका 'जलं रसितुं-स्वादितुं पातुमिच्छेत्' ए प्रमाणे छे. पद्य २०नी अवचूरिमां अने टीकामां (टीकामां सामान्य शाब्दिक फेरफार छे) 'अस्मिन् वृत्ते सूरिमन्त्रः, वक्ष्यमाणवृत्तषट्केषु सूरिमन्त्रो ज्ञेयः' आ प्रमाणे उल्लेख होवाथी २० थी २६ सुधीना पद्योमां सूरिमंत्र निहित छे, तेवू समजवू पडे. पद्य २५ना प्रथम चरण 'विबुधार्चितबुद्धिबोधात्'मां टीकाकार 'विबुधाविशिष्टपण्डिता-गणधरास्तैरर्चितस्तीर्थकरस्तस्य बुद्धिः-केवलज्ञानं तया बोधोवस्तुस्तोमस्य परिच्छेदस्तस्माद् विबुधाचितबुद्धिबोधात्' आ प्रमाणे टीका करे छे. परन्तु अवचूरिकार '०बोधो यस्य, तस्मात्' आम बहुव्रीहिसमास करी पञ्चम्यन्त करेल छे. पद्य ३३ना बीजा चरणमां अवचूरिकारने 'तथा परस्य' पाठना बदले 'तयाऽपरस्य' पाठसंमत छे केमके 'तथा तद्वदपरस्य' ए प्रमाणे अवचूरि मळे छे. स्तोत्रनु ४४मुं पद्य पूर्ण थया बाद- "इति भक्तामरस्तवसंपूर्णो लिखितः । युगप्रधानभट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्य पण्डित हेममन्दिरगणीनां शिष्य पं. आणन्दकीर्तिगणीनां शिष्य पं. मेरुधीरमुनीनां शिष्य पं. डुंगरजी लिवी कृतम् ॥" आ प्रमाणेनो पाठ छे. __ आ. श्री वि. शीलचन्द्रसूरिजी म.नो आभार मानुं के जेओश्रीए निजी संग्रहमांथी आ प्रति आपी-श्रुतज्ञाननी सेवानो लाभ आप्यो.

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