Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 12
________________ में परस्पर अधिक मतभेद है । संसार के सभी चिन्तकों ने, सभी आचार्यों ने धर्म के स्वरूप की व्याख्या विभिन्न प्रकार से की है। धर्म के सम्बन्ध में जितने प्रकार की अलग-अलग व्याख्याएं हुई हैं, संसार में उतने ही सम्प्रदाय भी स्थापित हुए हैं। आज विश्व का सम्पूर्ण मानव-समुदाय धर्म की विभिन्न व्याख्याओं के कारण लगभग २२०० सम्प्रदायों में विभक्त है। हमारे देश में धर्म के स्वरूप को लेकर सबसे अधिक अनुसंधान हुए हैं। अब तक अनेक मनीषी, अनेक आचार्य ऐसे हो चुके हैं, जिन्होंने धर्म के अनुसंधान में बड़े-बड़े तप किए हैं, बड़ेबड़े कष्ट झेले हैं। फलतः हमारे देश में भी धर्म की कई धाराएं प्रवाहित हुई हैं। उन सभी धाराओं में जैन, वैदिक और बौद्ध धर्म की धाराएं तो प्रधान हैं ही-यहूदी, इस्लाम और जरतुश्त आदि धर्म-धाराएं भी, जो एशिया के दूसरे देशों में प्रकट हुई हैं, धर्म के ही अनुसंधान का परिणाम हैं। मनुष्य अपने आदिकाल से ही धर्म के सम्बन्ध में अनुसंधान करता चला आ रहा है। बड़े-बड़े आचार्य और धर्म-प्रवर्तक प्रकट हो चुके हैं । सबने अपने-अपने ढंग से धर्म की व्याख्या की है, धर्म के स्वरूप को उजागर किया है। यह सच है कि सभी चिन्तकों और विवेचकों ने धर्म की व्याख्या अपने-अपने ढग से को है, पर किसी ने कहीं यह नहीं कहा कि वे एक नूतन धर्म का प्रवर्तन कर रहे हैं। इसके विपरीत सबको व्याख्याओं और विवेचनाओं में एक ही स्वर का उद्घोष है। धर्मों की विवेचना में सभी केवल एक बात कहते हुए प्रतीत होते हैं-'हम उसी सत्य को प्रकट कर रहे हैं, जो सदा विद्यमान था, और

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