Book Title: Antim Tirthankar Mahavira
Author(s): Shakun Prakashan Delhi
Publisher: Shakun Prakashan Delhi

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Page 11
________________ धर्म का अमृत धर्म अमृत है । अमृत शीतल होता है, सुखकर होता है । अमृत से ताप मिट जाते हैं, क्लेश दूर हो जाते हैं। अमृत प्राणों में नव-शक्ति का संचार करता है, नश्वर को भी स्थायित्व प्रदान करता है - यही विशिष्टताएं धर्म में है। धर्म जब अपनी स्वर्णाभा के साथ प्रकट होता है, सुख, शान्ति और आनन्द का प्रकाश फैल जाता है । देश में, समाज में, मनुष्य के अन्तःकरण में-जहां भी धर्म अपने वास्तविक रूप में प्रकट होता है, क्लेश मिट जाता है, मलिनता के बादल छंट जाते हैं और खाइयां फूलों से पट जाती हैं, पारस्परिक पृथक्ताओं की दूरी सिकुड़कर समाप्त हो जाती है । इसीलिए बड़े-बड़े मनीषियों और आचार्यों ने देश, समाज और व्यक्ति को धर्म का अमृत पीने की सम्मति दी है। धर्म अमृत है, धर्म सूर्य है, यह तो सत्य है, पर धर्म क्या है, धर्म का स्वरूप कैसा है, इस सम्बन्ध में संसार के चिन्तकों ६

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