Book Title: Anekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 90
________________ सम्यक्त्व-कौमुदी सम्बन्धी शोधखोज ० विद्यावारिधि ज्योतिप्रसाद जैन जन परम्परा, विशेषकर दिगम्बर जैन परम्परा मे चिन्ह लगाया था और डा. राजकुमार जी के अनुमान बहु प्रचलित एव लोकप्रिय कथाग्रन्थ सम्यक्त्व-कौमुदी का को स्वीकार करने में हिचकिचाहट व्यक्त की थी, किन्तु सर्वप्रथम ज्ञात एव उपलब्ध मुद्रित प्रकाशित सस्करण प० विरोध में कोई पुष्ट प्रमाण अथवा तर्क भी नही दिया था। उदयलाल कासलीवाल द्वारा संपादित, प० तुलसीराम काव्य तदनन्तर १९७५ ई० में शान्तिवीरनगर श्री महावीर तीर्थ द्वारा अनुदित और १९१५ ई० मे हिन्दी जैन साहित्य जी से आचार्य शिवसागर-ग्रन्यमाला के अन्तर्गत मुनि श्री प्रसारक कार्यालय बम्बई द्वारा प्रकाशित है। तदनंतर पं. अजित सागर जी द्वारा सपादित तथा प० पन्नालाल जी नाथूराम प्रेमी ने अपने जैनग्रथ कार्यालय बबई से १९२८ साहित्याचार्य द्वारा अनूदित सम्यक्त्व-कौमुदी प्रकाशित ई० में और सेठ मूलचन्द्र किसनदास कापड़िया ने अपने हुई, जिसमे रचयिता अज्ञात सूचित किया गया। तथापि दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत से १६३६ ई० में उसी का अपनी प्रस्तावना मे प० पन्नालाल जी ने डा० राजकुमार प्रकाशन किया। भारतीय ज्ञानपीठ काशी से १९४८ ई० मे जी के वर्णी अभिनन्दन-ग्रन्थ वाले लेख का बहुभाग उद्धृत प्रकाशित नागदेव-कृत सस्कृत मदनपराजय के स्वसपादित करते हुए उनके मत को ही मान्य कर लिया प्रतीत होता है। संस्करण की प्रस्तावना (द्वि० सस्करण, १९६४ ई०, पृ. हमने अपने लेख 'सम्यक्त्व-कौमुदी-कथा और उसके ५७-५८) मे डॉ. राजकुमार जैन साहित्याचार्य ने मदन- कर्ता' (जैन सिद्धान्त भास्कर, भा० ३४ अ० २ दिस० पराजय के कर्ता नागदेव को ही अज्ञातकतृक सम्यक्त्व- ८१, पृ०१-८) में ग्रन्थ के १९१५ ई० में प्रकाशित कौमुदी का कर्ता अनुमानित किया, और सम्यक्त्व-कौमुदी सस्करण, जो हमें उपलब्ध था, के आथार से ग्रंथ का की ही उन्हे ज्ञात प्राचीनतम प्रति (ए. बेबर द्वारा उल्ले- परिचय दिया, जिनदेव अपरनाम नागदेव को उसका कर्ता खित १४३३ ई. की) के आधार से नागदेव का समय तथा उसकी १४०३ ई० की प्राचीनतम ज्ञात प्रति के वि. स. की १४वी शती का पूर्वार्ध प्रतिपादित किया। आधार से लमभग १३५० ई० उसका रचनाकाल अनुतदनन्तर उन्होने १९४६ ई० मे सागर से प्रकाशित वर्णी- मानित किया। हम भी सम्यक्त्व-कौमुदी और मदनपराअभिनदन-ग्रन्थ मे प्रकाशित अपने लेख में 'सम्यक्त्व-कौमुदी जय को अभिन्नकत क मान्य करते है। अपने एक अन्य के कर्ता' (पृ० ३७५-३७६) मे शैलीसाम्य, भाषासाम्य, लेख 'सम्यक्त्व-कौमुदी नामक रचनाए' (अनेकान्त व. उदधत पद्यसाम्य, अतकक्षसाम्य और प्रकरणसाम्य के ३४ कि०२-३, अप्रैल-सितम्बर ५१,१० २-६) मे हमने आधार पर मदनपराजय तथा सम्यक्त्व-कौमुदी के तुल- दिगम्बर एव श्वेताम्बर उभय परम्पराओ तथा संस्कृत, नात्मक परीक्षण द्वारा दोनो रचनाओ को अभिन्न-कर्तृक अपभ्रंश, कन्नड, हिन्दी, गुजराती आदि विभिन्न भाषाओं सिद्ध करने का सफल प्रयास किया। डा० राजकुमार जी मे रचित १६ रचनाओ का, जिनमे १२ दिगम्बर विद्वानों के सम्मुख सम्यक्त्व-कोमुदी का १९२८ ई० का जैनग्रन्थ- द्वारा तथा ४ श्वेताम्बर विद्वानो द्वारा रचित हैं, विवरण रत्नाकर कार्यालय बम्बई से प्रकाशित सस्करण था। दिया था। हमारे उक्त दोनो लेखों को देखकर स्व० अगरमदनपराजय के प्रथम संस्करण (१९४८ ई०) के ग्रंथमाला- चन्द्र नाहटा ने अपने लेख 'सम्यक्त्व-कौमुदी सम्बन्धी अन्य सपादकीय-निवेदन में प० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य ने रचनाए' (अनेकान्त व० ३४, कि० ४, अक्तूबर-दिस. अवश्य ही उन दोनों रचनाओं के अभिन्न कर्तृत्व पर प्रश्न ८१, पृ० ११-१२) मे मल्लिभूषण, यशःकीति, यश:सेन

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