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भावसंग्रह की लिपि प्रशस्ति
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चत्वारः प्र० सा० सोढ़ा दि. सा० गाल्हा तृ.सा. रला, नौलादे तत्पत्र बीवसी वि० सालमा भार्या नानी ततच० सा० माल्हा । सा. मोढ़ा भार्या भोली तत्पुत्र पंच पुत्राः त्रयःप्रसा. छीतर भार्या छायसदेतत्पुत्र चिकी। प्र० सा० चाहड़ दि० साषी वा तृ. सा. दूलह, च. सा. सा. चौहप भार्या चतुरखदे, पृ.पि. राणा। सा० भेला देवा, पं० सा. पूना। सा० पाहड भार्या मदना, सा. भार्या भावलदे। सा० माल्हा भार्ये प्र.नाहा, हि. दूलह भार्या करमा तत्पुत्र त्रयः प्र० सा० पोया, दि० मेहां। तत्पुत्री दो प्र० सा. टेहू, वि० सा• नोता, सा. सायेल्हा, तृ० सा. श्रीपाल, सा० पोया भार्या पौसिरि टेहू भार्या त्रयःप्र. तिहुणश्री, वि० सुहागदे, तृ० गूजरि तत्पुत्री द्वीप्र० सा. सुरताण, द्वि० चि० पचाइण, सुर- तत्पुत्री ग्रोप्र. सा. पदमप्ती भाप्र. प्रताप सि. ताणभार्या सुहागदे सा० थेल्हा भार्ये द्वे प्र० सरसुति, द्वि- पाटमदे, द्वि० चि. सा. गोपाल । सा० नोता भार्यप्र. लाडो तत्पुत्री द्वौ प्र. डूगरसी भार्या नाथी द्वि. सा. नौणादे द्वि० कोउमदे तत्पुत्री दीप्र. वि. मावा भार्या भेल्हा, सा० श्रीपाल भार्ये द्वे प्रथमा सरुपदे, द्वितीया लहुडी, अहंकारदे द्वि० चि० सांगा एतेषां मध्ये सा० टेहूं"...... तत्पुत्र सा० रूपा। सा० देवाभार्ये ३० प्र० साभौ० द्वि० (स्याही फेर मिटा दिया है) इदं शास्त्रं मिलाप्य कल्याण सरूपदे तत्पुत्राः त्रयः प्र० सा. सरवण, भार्या होली, व्रत उद्योतनार्थ आचार्य श्री (धर्मचंद्राय काट दिया है) हेम. तत्पुत्र सा. हेमा, सा० टोहा भार्या चन्द्रा सा० ईसर भार्ये कीर्तयेदमा ज्ञान वा शानदानेन इत्यादि पठनीयं । सूर्ण भवत। द्वे प्रथम ईसर दे, द्वि० वार, सा. रतना भार्या सिरमा
श्रुतकुटीर, ६८कुन्ती मार्ग, विश्वास नगर तत्पुत्राः त्रयः प्र. सा. डाल भार्ये हे प्र० डाली दि.
शाहदरा, दिल्ली-११००३२
(पृ० २५ का शेषांश) अजमेर गादी पर रहे भट्टारकों का क्रम निम्न प्रकार दिया हुआ है१. भट्टारक श्री विद्या नन्दि जी
२. भट्टारक श्री महेन कीर्ति की , श्री भुवन भूषण जी
४. , श्री अनन्त कीर्ति जी ५. , श्री विजय कीर्ति जी
६. , श्री तिलोक कीर्ति की ७. , श्री भुवन कीर्ति जी
८. , श्री सकल भूषण जी उक्त पट्टावलि का "भट्टारक सम्प्रदाय" के भट्टारकों की लिस्ट से मिलान करने पर निम्न प्रकार से अंतर मिलता है जो दृष्टव्य है
उक्त पट्टावलि की क्रम संख्या ५ और ६ के बीच में कुन्दाकुन्दाचार्य का नाम और उपलब्ध होता है। इसी प्रकार क्रम संख्या १८वें के स्थान में जटासिंह नन्दि, २८वें के स्थान में श्रीभूषण, ३३वें के स्थान पर धर्म नन्दि, ३६वें के स्थान पर नागचन्द्र, ४१वें के स्थान पर हरिश्चन्द्र, ४२व के स्थान पर भ. महीचन्द, ४५ के स्थान पर गुणकीर्ति, ५३३ के स्थान पर ब्रह्मनन्दि, ५६वें के स्थान पर हरिनन्दि, के स्थान पर गंगकीर्ति, ६६ स्थान पर चारुनन्दि, ८७वें के स्थान पर रत्लकीर्ति एवं 6 के स्थान पर म० सुरेखकीर्ति मिलता है।
इसी पट्टावलि में उल्लिखित क० सं० १.१ से १०८ तक के सभी मदारकों के नाम के भी "भट्टारक सम्प्रदाय" की सूची में नहीं है इसके स्थान पर क्रमशः भट्टारक विद्यानन्दि, म. महेन्द्रकीर्ति, म. बनन्तकीर्ति, प. भुवनभूषण तथा म. विजयकीर्ति का नाम है।
जैन मनुशीलन केन्द्र, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर