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आचार्य कुन्दकुन्द को जैन दर्शन को देन ५७.प्र. सा०, गा०२८
७७. वही, गा० १३५१ ५८. वही, गा० १२२६-३०
७८. वही, गा० ११३७-३८ ५६. जदि ते ण संति णाणे ण होदि सव्वगय ।
७६. वही, गा० १३६ सम्वगय वा णाणं कहं ण णाणट्ठिया अटठा । ८०.प्र. सार, गा २,४०। 'नुलना करें-उत्तराध्ययन सूत्र, प्र० सा० १३०
२८।१२ ६०.ज पिच्छइ त च दसण भणिय । चरित्त पा०, गा० ३ ८१. पंचास्तिकाय, गा०७६ ६१. सम्मत्तसद्दहणं-14. का. गा० १०७
८२. नियमसार, गा० २६
८३. वही, गा०२८ ६२. नियमसार, गा० १३-१४
८४. पवास्तिकाय, गा० ७४-७५, एवं गा० ७९ ६३. ....'ण हवदि णाणेण जाणगो आदा । प्र० सा.
८५ वही, गा० २० ६४.णाणं अण्ण त्ति मद वदिणाणविणा ण अप्पाण। ८६. (क) नियमसार, गा०२१-२४, (ख) प०कायतम्हा णाण अप्पा अप्पा णाण व अण्ण वा ।।
गा०७६ वही, गा० श२७ ८७. गा० २५-२७ ६५. आदाणाणपमाण "। वही, गा० ११२३
८८. गा० २०७१ ६६. वही, गा० १२४.२६
८६. गा० ७३-७१ ६७. वही, गा० २।२६
१०. नियमसार, गा०२६ ६८: उवओग विसुद्धो जो विगदावरणंतरायमोहरओ।
६१. प० का०, गा० ७७ भूदो सममेवादा जादि परणेयभूदाण । प्र० मा० ११५ ६२. वही, गा० ८१ ६६. तह सो लद्धसहावो सव्वण्ह सव्वलोगपदिमहिदो। ६३. प्रवचनसार, गा० २०७१
भदो सयमेवादा हवदि सयभु ति णिद्दिट्ठी ।।वहा, १११६ ०४. द्रष्टव्य-नियममार, गा० २७,प० काय, गा. ७०. पक्खीणघादिकम्मो अणंनवखीरिओ अधिक नेजो। ६५. नियमसार, गा० २५ एव प० काय, गा० ७८ जाटो अदिदिओ सो णाणसोक्ख च परिणमदि।। ४६. प० का०, गा०६०
वही, गा० १११६ १७. प्रवचनसार, गा०२।७२ ७१. बही, गा० १०२२
१८. णिता वा लुक्खा वा अणुपरिणमा समा वा विसमा वा। ७२. वही, गा० ११४१
समदो दुराधिगा जदि बज्नंति हि आदिपरहीणा । ७३. प्र० सा० ११४७ ७४. वही, गा० ११४८
णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्वेण बंधमणुहवदि । ७५. वही, गा० ११४६
लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पचगुणजुत्तो। ७६. वही, गा० ११५०
वही, गा०२।७३-७४ (पृष्ठ २८ का शेषांश) के प्रकाशन मे श्वे. समाज से कही आश्वासन मिल गया है दिगम्बरी परम्पराओं, मान्यताओं, विवेचनाओं, गवेष. होगा और वे ऐसा कर गये पर सौभाग्य कहिए या दुर्भाग्य णाओं एव गिद्धान्तों से लोग सर्वया अपरिचत है. इसमें प्रकाशन हआ दिगम्बर समिति द्वारा, दिगंबरों ने ही वि० किसी का दोष नही है इम सबके लिए सम्पूर्ण दिगम्बर मान्यताओं पर कुठाराघात किया।
समाज उत्तरदायी है। समय रहते यदि इस ओर ध्यान न इस प्रकार यदि यही स्थिति रही तो भविष्य में दिया गया तो दिगम्बरत्व सर्वथा लुप्त हो जावेगा। आज दिगम्बरत्व का क्या होगा? क्या कभी किसी ने इस प्रश्न बालकिशोर पभीरता से चिन्तन मनन एवं विचार विमर्श किया है महानुभाव होते तो वे इस शिथिलाचार को किञ्चिन्मात्र मेरा आशय किसी वर्ग विशेष से राग द्वेष का नही है मैं
भी सहन न करते और डके की चोट से इन सबकी बखिया तो इतिहास का विद्यार्थी हूं और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में
उधेड़ देते। पर आज के जैन पत्रकार, जिनका कार्य शिषिही मेरी यह कल्पना है कि आगामी हजार पाँच सौ वर्षों
लाचार को रोकने के लिए समाज को इस दिशा में प्रेरित में दिगम्बरत्व का सर्वथा लोप हो जावेगा और श्वेताम्बरत्व
करना होना चाहिए था, वे स्वयं किसी न किसी खेमेवाद ही जैनधर्म रह जावेगा और दिगम्बरत्व का उतना विशाल
का शिकार हैं और शिथिलाचार का पोषण कर रहे है। पाङ्गमय सर्वथा उपेक्षणीय हो जावेगा। बाज भी विदेशों में बन धर्म के नाम पर वेताम्बरत्वकाही प्रचार हो रहा बोपोलीलपीरा।
अस्तु