Book Title: Anekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 153
________________ नधान में माराधक की अवधारणा है वह सम्पूर्ण केवल ज्ञान और केवल दर्शन से युक्त होकर कर्म अपण में व्यापार करते है उन्हें अपक कहते हैं। ऐसे आयु का क्षय होने पर मोक्ष प्राप्त करता है। वह समस्त क्षपक जिन्होंने संघ के मध्य में प्रतिज्ञा करके चार प्रकार कर्म लेस के चने जाने से विशुद्ध होता है तथा समस्त आराधना रूप की पताका को ग्रहण किया है ये शूरवीर क्लेशों से छूट जाता हैं। और पूज्य हैं। जिन्होंने भगवती आराधना का पूरी तरह समाधि का इच्छुक, निर्यातकावार्य की खोज में जाता से पालन किया वे पुण्यशाली और ज्ञानी हैं और उन्होंने हुआ क्षपक निम्न चार कारणों से भी आराधक होता है- जो प्राप्त करने योग्य था, उसे प्राप्त कर लिया। जिन्होंने १. 'मन, वचन, काय के विकल्परूप रत्नत्रय में लगे अति- सम्पूर्ण भगवती आराधना का आराधन किया उन महान चारों को, आलोचना के दोषों को त्यागकर में सम्यग् भावों ने लोक में क्या नहीं प्राप्त किया अर्थात् प्राप्त रूप से गुरु से निवेदन करूंगा' ऐसा संकल्प करके करने योग्य सब प्राप्त कर लिया।" जो गुरुके समीप जाने के लिए निकला है, यदि वह अपक की तीर्थ से उपमा--क्षपक एक तीर्थ है मार्ग में ही अपनी बोलने की शक्ति खो बैठे तो वह क्योंकि संसार से पार उतारने में निमित्त है। उसमें स्नान आराधक होता है। करने से पाप कर्म रूपी मल दूर होता है। अतः जो दर्शक २. अपने दोषो की आलोचना करने का संकल्प करके जो समस्त आदर भक्ति के साथ उस महातीर्थ में स्नान करते गुरू के पास जाने को लिए निकला है वह यदि मार्ग हैं वे भी कृतकृत्य होते हैं। तथा वे सौभाग्य शाली है। में ही मरण को प्राप्त हो जाए, तो वह आराधक यदि तपस्वियों के द्वारा सेवित पहाड़ नदी आदि प्रदेश होता है। तीर्थ होते हैं तो तपस्यारूप की राशि क्षपक स्वयं तीर्थ ३. अपने दोषो की आलोचना करने का संकल्प करके जो क्यों नही है। यदि प्राचीन प्रतिमाओ की वन्दमा करने गुरु के पास जाने को निकला है, यदि आचार्य बोलने वालों को पुण्य होता है तो क्षपक की वन्दना करने वालों में असमर्थ हों तो भी वह आराधक है । को विपुल पुण्य क्यों नही प्राप्त होगा? जो तीव्र भक्ति ४. जो गुरू के सन्मुख अपना अपराध निवेदन करने के पूर्वक क्षपक की सेवा करता है उसकी भी सम्पूर्ण आरालिए निकला है, यदि आचार्य मरण को प्राप्त हो धना सफल होती है।" जाए, तो भी वह आराधक है। माराषक क्षपकको प्रसंशा-क्षपक श्रेणी पर अध्यापक, शा० उ० मा० विद्यालय चढ़ने वाला जीव चरित्र मोहनीय का अन्तरकरण कर छोटे डोंगर, बस्तर (म.प्र.) लेने पर भपक कहलाता है। धवला में लिखा है जो जीव पिन ४९४-६६१ - संदर्भ-सूची १. मूलाचार २१६०३ ७. वही १९१६-१९१७ २. आराधनासार १७:१६ ८. भगवती आराधना ४०५-४०६ ३. बोधनियुक्ति ३८१, पृ० २५० ६. कसाय पाहुः १११, १८पृ० ३४७ ४. आराधना समुच्चय २२४-२२५ ५. मूलाचार २।१०४.१०५ १०. धवला ११. १, २४० २२४ ६. भगवती माराधना १९१२-१९१५ जीवराज ग्रंथमाला, ११. भगवती आराधना १९९५-१९९७ शोलापुर संस्करण १२. वही २०००-२००३

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