________________
जरा-सोचिए
1. नेता के विचार और हम ?
२. चोर जगा रहे हैं ? १. मैं सत्य कहता हूं, बिल्कुल शुद्ध हृदय से कि मुझे चोरी क्यों होती है और किसकी होती है ? ये सोचने लेकर कोई (अमृत) महोत्सव मने-इस पक्ष में मैं नही की बात है । जिन-भगवान वीतराग हैं, मन्दिर और मंदिर हूं। मैं नहीं चाहता, इसे लोग इस या उस तरह मनाये। के उपकरण सभी उनके नही। ये तो शुभ-रागियो द्वारा मैंने तो अपने दिल्ली-बम्बई के मित्रो और सहयोगियो से शुभ-रागभाव में निर्मित रागियो के भवन हैं और उनके निवेदन किया है कि वे मुझे अपनी शुभ कामनाये दे, यही बहुमूल्य भौतिक उपकरण भी रागियों के ही । जिम-शासन मेरा पाथेय है।
मे बीतराग-भाव की महिमा है और वीतरागभाव के २. हमे कुछ आदर्श स्थापित करने होगे । पौत्र चि० साधन जुटाने के उपदेश । बकुन की शादी हुई जितना भी देना चाहा सब कार अब परम्परा कुछ ऐसी बनती जा रही है कि लोग कर दिया। इसी प्रकार दूसरे बच्चो की शादी जब होगी,
मन्दिरों और मूर्तियो मे भौतिक सम्पदा देखने-दिखाने के मेरा मन है, उन सब में भी हम कुछ नही लेंगे।
अभ्यासी बन रहे है-वे सासारिक विभूति का मोह छोड़ने
के स्थान पर, वीतराग-भाव की प्राप्ति में साधनभूत३. केवल प्रचार-प्रसार से काम नही चलेगा, वस्तुत
मन्दिरो, मूर्तियो मे सासारिक विमूति देखने लगे हैं। कोई हमे स्वय कुछ जिम्मेदारी उठानी चाहिए कम से कम उम
चादी, मोने और हीरे की मूर्तियां बनवाते हैं तो कोई बहक्षेत्र मे जिममे कि हमाग विश्वास है।
मल्य छत्र-चमर सिंहासन आदि । और यह सब होता है ४. आज हमारे यहा तनाव, पागलपन, कलह, राग
नाम, ख्याति, यश और प्रतिष्ठा के लिए लोग चाहते हैं द्वेप बहुत बढ़ गये है।
नाम लिखामा आदि । यह मार्ग सर्वथा त्याज्य है। ५. मेरे हिसाब से, जो अप्रमत्त (शिथिलाचारी नही)
___ जब लोगो ने राग-त्याग के वीतरागी उपदेश की शास्त्रोक्त मुनियो के प्रति भक्ति-भाव रखता है, वह मुनि
अवहेलना की तब चोरो ने थप्पड मारकर उन्हें सचेत
किया और वे मार्ग पर आने को मजबूर होने लगे हैं। ६. मुनि वह बने जिसे शास्त्र का सम्यज्ञान हो
अब वे कह रहे हैंऔर तदनुसार असदिग्ध आचरण की तैयारी हो ।
सादा मन्दिर मे सादा मूर्ति, वह भी विशाम पाषाण७. आज मुनियो को आहार देने की प्रक्रिया काफी
निर्मित होनी चाहिए-जिससे वीतरागता मलके । जटिल और व्ययसाध्य बन गयी है। मामूली आदमी
लोगो की इस प्रक्रिया से क्या हम ऐसा मान लें कि आहार देने की हिम्मत नही कर पा रहा है।
जिन्होने वीतरागता की अवहेलना की उन्हें चोरो ने थप्पड़ ८ हमारे दादा जी कहा करते थे, पण्डित जी आये
मारकर सीधे मार्ग पर लाने का उपाय ढूंढा है। असली हैं बेटा ! इनके पैर पड़ो! इनके लिए खाना खुद पगेस
बात क्या है ? जग सोचिए ? और यह भी सोचिए कि कर लाओ । आज यह बात नही है। अब कोई किसी के
लोगो को सादगी और वीतरागता की ओर डालने के पर नही पडता। नौकर, या ब्राह्मण खाना परोसता है। अन्य उपाय क्या है? जो सन्मान-मत्कार की भावना थी, वह लुप्त हो गई है। ३.प्रचार बातों से या प्राचरण से?
-श्री साह श्रेयांसप्रसाद जैन के उद्गार दिगम्बरत्व वस्तु का स्व-रूप-धर्म है और इसका
(तीर्थकर' से साभार) भाव नग्नत्व से है । जब कोई वस्तु आवरण अर्थात विकार