Book Title: Anekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 160
________________ ३२, वर्ष २६,कि. अनेकान्त होनी चाहिए। फिर, जब महावीर जीवन के कुछ प्रसंगों अधिक हो सकते है-जिनका निराकरण होना चाहिए था। और आगम के कुछ सिद्धान्तों में पंथ-भेद हो और अन्य का पाठक विचारें कि यदि कही किसी सरकारी स्कूली निर्माण दिगम्बर संस्था द्वारा संप्रदाय-निरपेक्ष दृष्टि से । पाठ्यक्रम में कोई विरोधी बात लिख दी जाती है तब हम कराया गया हो तब तो विरोध-परिहार और भी आव ही उसका विरोध करते हैं कि यह बात हमारे सिद्धान्त के श्यक है जो प्रथ मे नही हुमा, अपितु दि० सिद्धान्तो के विरुद्ध काफी कुछ लिखा गया हैं। विरुद्ध क्यों लिखी गई ? यह प्रकाशन तो दिगम्बरो के द्वारा दिगम्बर सिद्धान्तो का स्वंय ही घत है । उक्त सभी __ लेखक का बारम्बार निर्देश होने पर भी और यह प्रसंग पाठकों के समक्ष सम्मत्यर्थ प्रस्तुत हैं । कृपया पाठक विदित होने पर भी कि लेखक इसमे अधिक उपयोग अपनी सम्मति भेजकर अनुग्रहीत करें। हम उसी के आधार श्वेताम्बर-मान्यताओ का कर रहा है। दिगम्बर प्रकाशन पर "अथ समीक्षा" करेंगे । यत ग्रन्थ हमें समीक्षार्थ प्राप्त समिति और सम्बन्धित व्यक्तियो का यह कर्तव्य था कि है। और वीरसेवा मन्दिर कार्यकारिणी ने भी हमे यह वे सप्रदाय-निरपेक्ष अथ मे से ऐसे प्रसगों को हटाने का कार्य सौंपा है। हाँ, सकेत देते जिनसे दिगम्बरो के सिद्धान्तो का खडन होता ___अन्त में हम उन सभी दि० संस्थाओ से, और विद्वानों स्मरण रहे--सभी पाठक अन्तिम निर्देशिका, परि से करबद्ध निवेदन करते है कि वे जहा वाहरी रूपों और शिष्ट, परिप्रक्षिका आदि पढ़ने के अभ्यासी नहीं होते। टीप-टाप पर विशेष दृष्टि रखते हों-वहां आगम के मूल कई तो पूरा प्रथ भी नही पढ़ते। ऐसे में प्रथ के मुखपृष्ठो तथ्यो को सुरक्षित रखने पर भी विशेष बल दें। व्यवहार बदलने वाला है-पर आगम में वर्णित मूल तत्व सदा एक पर भी मोटे टाइम मे लिखा देना चाहिए था कि-कथानक रूप और अरिवर्तन शील है-उनकी रक्षा से ही दिगम्बमे श्वेताम्बर-मान्यताओ का बाहुल्य है और सैद्धान्तिक स्थलो रत्व की रक्षा होगी बाहरी आडम्बर या जय-जयकार से मे दिगम्बर-पवेताम्बर मतभेद भी है उस पर ध्यान न नही । वीर नि० ग्र० प्रकाशन समिति से भी हमारी करदिया जाय आदि । फिर, ऐमे प्रकाशन की आवश्यकता ही क्या आ पड़ी थी। इसके प्रकाशन के विना ही दि० प्रका बद्ध प्रार्थना है कि वह दिगम्बर सिद्धान्तो के सरक्षण और प्रचार मे सरसेठ हुकुम चन्द जी साहब की मर्यादाओ को शन-समिति उद्देश्य-पूर्ति कर रही थी। पे उल्टा दुष्प्रचार कायम रख इन्दौर के नाम और सेठ साहब के संकल्प को ही हुआ है। हमने समणसुत्त भी पढ़ा है उसमे विरोध को अक्षुण्ण रखे। यतः-वर्तमान काल में इस क्षेत्र में बीतनही छुआ गया-'अनुसर योगी' का स्तर भी वैसा हो राग देव का सर्वथा अभाव है और परम दिगम्बर गुरुओ अविरोधी होना चाहिए था। ये सब हम इसलिए लिख रहे हैं कि आज जनता की का समागम भी यदा-कदा होता है। ऐसे में श्रावको रुचि आगम के पठन-पाठन मे दिन पर दिन कम होती जा और जिज्ञासुओं को आगम-मात्र का सहारा है; उसके हाई रही है। विशेषकर नई पीढ़ी के बाल-युवा सभी का ध्यान को सुरक्षित रखने और तदनुकूल साहित्य को प्रकाशित प्रकाशित नवीन पुस्तकों और पत्रिकाओं पर ही रहता करने कराने से ही दिगम्बर धर्म की रक्षा है। समिति है-वे उन्ही के आधार पर अपनी श्रद्धा और ज्ञान को सतत जागरूक रहे ऐसी हमारी भावना है। पुष्ट करते हैं, उनकी दृष्टि यह भी नही होती कि ये किस वीर सेवा मन्दिर श्रेणी का साहित्य है। ऐसे में विपरीत श्रद्धान के अवसर नई-दिल्ली

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