Book Title: Anekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 154
________________ बीज में वृक्ष की संभावना संसार मे जितनी आत्माएं हैं, चैतन्य है, वे सब पर - मात्मा बनने के बीज हैं। सब आत्माओं में परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है । यह सबसे बड़ी स्वतंत्रता है यह सबसे बड़ी महान स्वतंत्रता की घोषणा है कि हरेक व्यक्ति ही नहीं, हरेक जीवात्मा मे परमात्मा बनने का उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। वह परमात्मा बन सकता है वह God - खुदा परब्रह्म भगवान, परमात्मा बन सकता है उससे कुछ भी कम रहने की बात नही है। अगर कुछ भी कम रहने की बात रही तो आत्मा फिर एक जाति की नहीं दो जाति की हो जायेगी । जैसे बीज मे वृक्ष बनने की शक्ति विद्यमान है उसको मौका मले तो वह वृक्ष बन जाता है । परन्तु आत्मा बीजरूप परमात्मा है उसे मौके मिलने की बात नही वह तो निज में इनीसीमेटीम लेने वाला है इसलिए उसे मौका मिलने की बात नहीं है। उमे ब्रह्म बनने की जिज्ञासा उत्पन्न करने की बात है उसको चुनाव करना है कि मुझे परमात्मा बनना है उसे कुछ भी कम नहीं रहना है यह उसका चुनाव है। जानवर बनना भी उसका चुनाव है मनुष्य बनना भी उसका चुनाव है और परमात्मा बनना भी उसका चुनाव है । परमात्मा बनना उसकी पूर्णता है उसका विकास है और पशुता उसको हास है। चुनाव उसी का है। व्यवहार में यह कहा जाता है कि मनुष्य ही परमात्मा बन सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि पशु डाइरेक्ट परमात्मा नही बन सकता वह अपना विकास करने लगेगा तो मनुष्य बनेगा और वहां से परमात्मा बन जायेगा । इसका अर्थ यह भी है - "कि जिसमें पशुता है जिसमें मानवता ही नही वह परमात्मा कैसे बने इससे तो क्रम का उलंघन हो जायेगा ।" बीज अभी अंकुर ही नहीं बना वृक्ष कैसे बन जायेगा। D वक्ता, श्री बाबूलाल जंन मनुष्य चौराहे पर खड़ा है और उसके चारों तरफ रास्ते गये हैं। उसे चुनाव करना है कौनसा रास्ता, क्या बनने का रास्ता पकड़ना है। कहते हैं कि तू अपने को इतना ऊंचा उठा सकता हैं कि ऊचाई की चरम सीमा तक उठ सकता है तू इतना गिर सकता है कि निचाई की चरम सीमा को छू जाये । अभी जहां खडा है वह भी तेरा ही चुनाव था। चुनाव करते ही वैसा हो जाये यह बात नही है चुनाव कर और उस रूप होने का पुरुषार्थ कर । अगर पूरा पुरुषार्थ हुआ तो तू बसा हो सकता है। वैसा बनने की स्वयम् भावना तेरे मे है। अगर दूमरे बीज वृक्ष बन सकते है तो तू भी बन सकता है तू भी उसी जाति का है जो बने है वह भी तेरी जाति के थे। एक वृक्ष पर दो आम लगे है एक पक गया है एक कच्चा है । कच्चा कह रहा है पक्के से, कि तू भी पहले मेरे जैसा कच्चा आम था, केरी था। तू केरी से ही आम वना है मेरे मे भी आम बनने की शक्ति विद्यमान है मैं भी जाति का हूं जिसका तू है तेरे मेरे मे कोई फरक नही आम बन कर रहूगा । मैं भी उसी वृक्ष का फल हूं उसी है फरक इतना ही है तेरा विकास पूर्ण हो गया है और मेरे मे पूर्ण विकास करने की शक्ति विद्यमान है । मैं तेरे जैसा हो जाऊगा । जब साधक साध्य के सामने जाकर, जब भक्त भगवान के सामने जाकर अपने को बीजरूप और साध्य को फलरूप देखता है तो फल बनने की प्यास जागृत होती है। जब यह समझता है कि मैं भी ऐसा बन सकता हूं तब वह श्रद्धा मे तो वैसा बन गया, मात्र प्रवृत्ति मे बनना रहा है। वह अपने आपको ऐसा देखता है जैसे ऐसा हो ही गया जब तक अपने मे पड़ी हुई बीजरूप शक्ति को नही पहचानता था तब तक पामर था। जब शक्ति को पहचाना तो उस रूप हुआ सा ही अनुभव करने लगा जिस रोज बीजरूप भगवान को जान लेता है वही । (शेष आवरण पृ० ३ पर)

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