Book Title: Anekant 1983 Book 36 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 131
________________ श्रीलंका मौरजनधर्म आदिपुराण के अनुसार भरत चक्रवर्ती ने अपने लोग जिनेन्द्र भगवान की पूजा-उपासना करते थे। रावण दिग्विजय अभियान में उक्त राक्षसद्वीप को भी विजय अपने युग का अर्ध-चक्री सम्राट एवं प्रतिनारायण था। किया था। एक अनुश्रुति के अनुसार भारत के पूर्वी तट इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न रघु के वंशज अयोध्यापति से वररोज नामक एक असुर सरदार अक्ष, यक्ष, नाग महाराज दशरथ के पुत्र राम जब अपनी पत्नी जनकसुता आदि विद्याधर जातियो के व्यक्तियों को लेकर लंका गया वैदेही सीता तथा अनुज लक्ष्मण के साथ दंडकारण्य में था और उसी ने उस द्वीप को बसाया था। पद्मपुराण से बनवास कर रहे थे तो एकदा लक्ष्मण के हाथों अनजाने विदित होता है कि बीसवें तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थ शबूककुमार का वध हो गया । वह रावण की बहिन चन्द्रमें मालि, सूमालि और माल्यवान नाम के तीन भाइयो ने तखा का पत्र था। परिणाम पनि इस द्वीप पर अधिकार कर लिया था। उसी काल मे दूषण के साथ राम लक्ष्मण का भीषण युद्ध हुआ। उस रथनपुर का विद्याधर नरेश इन्द्र था जो बड़ा शक्तिशाली, अवसर का लाभ उठाकर रावण ने सती सीता का अपहरण प्रतापी एव महत्वाकांक्षी था और प्रत्येक बात मे देवराज कर लिया और उसे लका में ले गया। रावण की प्रतिज्ञा इन्द्र की नकल करता था। उसने समस्त विद्याधर राजाओं थी कि किसी परस्त्री का उराकी इच्छा एवं सहमति के को पराजित करके अपने अधीन कर लिया। लंका वालों बिना उपभोग नही करेगा, साप ही वह अत्यन्त मानी था को भी उसने पराभूत कर दिया। युद्ध में मालि मारा और स्वय को सर्वशक्तिशाली समझता था। अतएव वह गया और सुमालि एवं माल्यवान अपने परिवार सहित मीता को उसके पति राम के पास भेजने के लिए राजी मजात गप्तस्थान मे शरण लेने पर विवश हुए। इन्द्र ने नही हआ। उधर राम व लक्ष्मण सीता की खोज में भटलका मे अपने आज्ञाकारी सामन्त वैशवण को स्थापित कर कते रहे और जब उन्हें रावण के कुकृत्य का ज्ञान हुआ तो दिया जो साक्षात कुबेर जैसा था । उसके समय मे लका के हनुमान, मुनीव, नल, नील आदि वानरवंशी विद्याधरों को वैभव मे अभूतपूर्व वृद्धि हुई। उन्होने अपना सहायक बनाया और समुद्र पार करके, सुमालि का पुत्र रत्नथवा था जिसकी पत्नी का नाम लका पर आक्रमण कर दिया। रावण की अनीति से क्षन्ध केकसी था-इन दोनों का पुत्र सुप्रसिद्ध राक्षस-राज होकर उसका भाई विभीषण भी राम से आ मिला। राम नन अपरनाम रावण हुआ। वह अत्यन्त पराक्रमी और रावण के मध्य भयंकर युद्ध हुआ जिसमें नारायण और तेजस्वी था। होश सम्भालने पर उसे अपने कुल के के हाथों प्रतिनारायण रावण मारा गया। उसके अनेक पराभव का कारण ज्ञात हुआ और उसने लंका पर चढ़ाई परिजन और सामन्त भी युद्ध में काम आये । इन्द्रजित कर दी तथा वैश्रवण को पराजित करके लका पर अधि- आदि कई एक ने जिनदीक्षा ले ली। राम और सीता का कार कर लिया। वैश्रवण रावण का मौसेरा भाई था- मिलन हुआ । लंका का राज्य विभीषण को सौंपकर राम, उसने रावण से संधि कर ली, अपना पुष्पक विमान भी लक्ष्मण, सीता आदि अयोध्या ची गये । लंका में विभीषण उसे दे दिया और अन्यत्र जाकर रहने लगा। अब रावण एवं तदनन्तर उसके वंशज चिरकाल तक राज्य करते रहे । की प्रभसत्ता, शक्ति और समृद्धि में दुतवेग से प्रगति होने ये प्रायः सब ही जिनधर्म भक्त थे। लगी। उसने इन्द्र विद्याधर तथा उसके प्रायः सभी सामन्तों महाभारतकाल में श्रीकृष्ण सिंहलद्वीप (लंका) जाकर को पराजित करके अपने अधीन कर लिया। अन्ततः बहा के राजा श्लक्षणरोम की कन्या लक्ष्मणा को हर लाये लकाधीश राक्षसराज रावण विद्याधर वंशियों का एकच्छत्र थे और उन्होने उसे अपनी पत्नी बनाया था। तेईसवें मम्राट बन गया। उसकी सोने की लका लोक-विख्यात हो तीर्थकर पार्श्वनाथ के तीर्थ में अंग-कलिंग-आन्ध्र के अर्धीगई। रावण और उसका परिवार परम जिनभक्त थे। श्वर महाराज करकंडु ने, जो एक जैन नरेश था, सिंहलराजधानी लंकापुरी का प्रधान देवालय सोलहवें तीर्थकर द्वीप की यात्रा की थी। अंतिम तीर्थकर भगवान महावीर भगवान शान्तिनाथ का अत्यन्त भव्य मन्दिर था जिसमें वे के समय (छठी शती ई०पू०) में कलिंग देश के सिंहपुर

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