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बिहार में जैन धर्म : प्रतीत एवं वर्तमान
प्रो० डा. राजाराम जैन, पारा
पृष्ठभूमि : प्राचीन जैन पुराणेतिहास में (वर्तमान हजारीबाग प्रक्षेत्र) के सम्मेद-शिखर (पावनाय "बिहार" शब्द का अर्थ
पर्वत), भद्रिकापुरी (वर्तमान भदिया आदि २२ तीर्थकरो प्राचीन जैन इतिहास मे 'बिहार' शब्द का अर्थ उम एव अन्य कोटि-कोटि जैन साधको की घोर तपस्या एवं पवित्र भूमि से है, जहाँ जैन-साधु एव साध्वियो का निरतर निर्वाण भूमि रही। विचरण होता रहा हो, उनके लगातार चातुर्मासो (वर्षा- वर्तमान बिहार प्रान्त का उदय वासों) से जो भूमि पवित्र हो तथा जो तीर्थकरो एव अन्य
कालान्तर मे उक्त सभी जनपद कुछ हेर-फेर के बाद जैन-साधको की जन्म, तप, समवशरण (उपदेश-भूमि) एव मिलकर मानिटार" निर्वाण की स्थली रही हो'। इस दृष्टि से वर्तमान बिहार
प्राचीनकाल मे जो "बिहार-क्षेत्र" आध्यात्मिक साधना की प्रान्त उसका साक्षात् प्रमाण है । क्योकि ईसा पूर्व की वी
पुण्यभूमि के रूप मे प्रसिद्ध था, वही आगे चलकर एक सदी के पूर्व के एतद्विपयक अनेक उल्लेख मिलते है । उदा- राजनैतिक तथा भौगोलिक मात्र
राजनैतिक तथा भौगोलिक सीमाक्षेत्र के प्रतीक-'बिहारहरणार्थ अग-जनपद (वर्तमान भागलपुर-प्रक्षेत्र) की चम्पा- प्रान्त' के रूप में विख्यात हआ। पुरी (मे स्थित मन्दार गिरि), बारहवे तीर्थकर वासुपूज्य
कुछ भौगोलिक एवं भाषा-वैज्ञानिक प्रमाणकी निर्वाणभूमि रही। तो मगध-जनपद को राजगृही'
जिस प्रकार 'बिहार' शब्द जैन-संस्कृति-गभित एक पावापुरी', नालन्दा', गुणावा एव कुण्डलपुर', कोल्हा
सार्थक नाम है, उसी प्रकार वर्तमान बिहार-प्रान्त के (कोटिशिला) पर्वत, प्रचार' एव श्रावक पर्वन गाथा बरा
अनेक नगरों, ग्रामों नदियो एव पर्वतों के नाम भी जैनबर की पहाड़ियाँ", अनेक तीर्थकरो एव माधको को जन्म,
सस्कृति-गभित सार्थक नाम है और गदि अधिक प्राचीन तप, समवशरण, बर्षाबास एवं निर्वाण की पुण्यभूमि रही ।
नही, तो भी वे नन्द एव मौर्य कालीन जैन-केन्द्र रहे होंगे, वज्जि-विदेह" (वर्तमान तिरहुत-प्रक्षेत्र) जनपद, तीर्थकर
इसमें सन्देह नही । ऐसे नामो मे वर्तमान चौसा (भोजपुर) नमिनाथ, मल्लिनाय एव वर्द्धमान को जन्म, तप, वर्षावास
चाइवासा, संथाल, मगध, विदेह, वेज्जि, नालन्दा, गया, एव समवशरण की पवित्र भूमि है, तो भगि-जनपद '
कर्मनासा, थावक-पहाड़ आदि प्रमुख हैं। ये सभी शब्द(पृ० १२ का शेषाश)
नाम मूलत. जैन-सस्कृति के सूचक हैं । इनका भापा-वैज्ञासन्दर्भ-सूची
निक एव जैन-दार्शनिक तणा आध्यात्मिक अर्थ निम्न प्रकार १. संवत सत्रह से ग्यारहै बरस, सुन्या भेद जिन वाणी परम, समझा जा सकता है:
फाल्गन मास पचमी वेत, गुरूवासर मन मे घरी हेत। चौमा"चउसाचउम्मासासार चतुर्मास:-वह स्थल, २. सभात्रन्द मुनि भया आनन्द भाषा करी चौपाई छन्द,
जहाँ का वातावरण शान्त, धर्मानुकूल एव सुनि पुरान कीना मंडान, गुरूजन लोक सुनदे कान ।
आध्यात्मिक साधना के लिए उपयुक्त हो और ३. सहेथ एक अर दोइसे वरस, छह महीने बीते कुछ तरस,
जैन-साधु एवं साध्वियां निविघ्न रूप से वर्षा महावीर निर्वाण कल्याण इह अतर है रच्या पुराण ।
ऋतु में चतुर्मास (वर्षावास) कर सकें। यहाँ ४. द्विशताभ्यधिके समासहधै समतीते अर्धचतुर्थ वर्ष युक्ते,
की खुदाई मे धातुओ की अनेक प्राचीन मूर्तियाँ जिनभास्कर वर्द्धमानसिद्धेश्चरित पद्य मुनेरिद निबद्धम् ।
उपलब्ध हुई है।