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अनेकान्त
थी वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख है। राम की वशी बन गए। जो लोग शीत प्रदेशों में रहते थे उनका प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि सुर, असुर, मानव, मूर्य का ताप बहुत सुखकारक था। मकान बनाते समय गन्धर्व, उरगादि सब प्राणियों मे गम का बल, आरोग्य ईटे मूर्य के ताप से बहुत जल्दी सूख जाया करती थी इस और दीर्घ जीवन विदित है।
इसलिए वे सूर्य की पूजा करने लगे और आगे चलकर गन्धर्व
सूर्यवंशी हो गए । सूर्यवशी लोग बड़े कठोर हृदय के होते गन्धर्व जाति बड़ी चपल और नित्यप्रिय होती थी थे । चन्द्रवशी चन्द्रमा की शीतलता ग्रहण कर सौभ्य स्वइनको मजाक करने में बड़ा आनन्द प्राता था। इनकी भाव में रहने का अभ्यास करते थे। सूर्यवशी लोग मृताजाति में विवाह विशेष पद्धति से होता था। जब इनकी त्मा के माथ आदमी और पशु को भी गाड़ते थे। मानव विवाह पद्धति को दूसरो ने अपनाना शुरु किया तब से की बलि भी उनमे निहित थी। चन्द्र वशी लोग ऐसा नही इस पद्धति का नाम गन्धर्व विवाह पड़ गया । इसकी राज- किया करते थे । सूर्यवंशी लोग बहत कलाकार थे उन्होने पानी का नाम गन्धार था जो वर्तमान मे कन्धार हो गया बहत विशाल भवन बनाये । है । अफगानिस्तान मे अफगान लोग है उनमे गन्धर्व जाति
मिश्र के पेरामिड इन मूर्यशियो से निर्मित है । वेस्थ के चिह्न प्राज भी मिलते है । गन्धव जाति कलाग बहुत के उत्तर-पश्चिम भाग में एक मन्दिर है जिसके प्रागन का सुन्दर होते थे । बाल्मीकि रामायण मे गम के मौन्दर्य को
एक पत्थर १२ टन का है। चन्द्रवशी अधिक कलाकार गन्धर्व जाति से उपमित किया है।
नहीं थे । वे वर्षों तक झोपडियो मे ही रहते थे। ये दोनों ज्योतिष्क
सस्कृतियाँ बाहर से पाई और भारत पर छा गई । पहले ज्योतिष्क देवो में सूर्य, चन्द्र, तारा, ग्रह और नक्षत्र ये दोनों संस्कृतियाँ भिन्न-भिन्न थी और बाद में दोनों भगवान की परिषद में उपस्थित थे। पुराणो की कल्पना क हो गई। इनकी मस्कति का विकास , है कि सर्य और चन्द्र कौन थे? आकाश से सूर्य और चन्द्र फैल गया था । वनवास जाते समय कौटाया m का धरती पर अवतरण होने की बात बुद्धिगम्य कम होती है कि सूर्य, चन्द्र, शुक्र, कुबेर और यम तुम्हारी रक्षा है। संभव कल्पना यह है कि इस भूमि पर मूर्यवश और करें। यहाँ कुबेर और यम व्यक्ति विशेष के साथ सूर्य चंद्रवंश थे।
चन्द्र का उल्लेख किसी व्यक्ति या जाति का ही सभवत' इतिहास बताता है कि राम सूर्यवशी और कृष्ण चन्द्र सकेत करता है। वंशी थे। सूर्यवश और चन्द्रवंश भी बहुत विस्तृत वश थे।
१२ प्रकार के वैमानिक देव सबसे अन्त मे आए। सौइनका उद्भव विशेष परिस्थिति को लेकर हुआ था। जो
धर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म लान्तक, शुक्र, लोग बहुत गर्म प्रदेशों में रहते थे उनके लिए सूर्य का ताप
महस्त्रारज, प्रानतज, प्राणतज, पारणज, अच्युतज । बहुत कष्टदायक था। चन्द्रमा की किरणे उन्हें अमृत के समान प्रतीत होती थी इसलिए गर्म प्रदेश में रहने वाले इनमे से किसी भी जाति का उल्लेख इतिहास के लोग चन्द्र की पूजा करने लगे और वे आगे चलकर चन्द्र- प्रकाश में नहीं है पर यह तो स्पष्ट अनुमान लगाया जा
सकता है कि उक्त चार प्रकार के देवों में से अधिकाश १. बल मारोग्य मायुश्च-रामस्य विदितात्मनः
यहाँ की जातियाँ प्रमाणित हो चुकी है तो फिर क्या कारण देवासुर मनुष्येषु-सगन्धर्वोरगेबुच ॥५०॥
अन्य भी धरती पर निवास करनेवाली जातियाँ नही थी। -वारा० अयोध्या कॉड सर्ग २ २. The SS. Ch. IV P. ३२
इनको इनकार करने मे तो एक भी पुष्ट प्रमाण नहीं है ३. गन्धर्व राजप्रतिम, लोके विख्यातपौरुषम् ।
४. शुक्र सौमश्च मूर्याश्च, धनदोऽयं यमस्तथा । दीर्घ बाहु महासत्त्व मत्तमातङ्गगामिनम् ॥२८॥
यान्न त्वामाचिता राम दण्डकारण्य वासिनम् ॥२३॥ -वा० स० अयोध्या काड सर्ग ३
-वा०रा० अयोध्या का० सर्ग २५