Book Title: Anekant 1940 05 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 7
________________ वर्ष ३, किरगा ७] श्रीपाल - चरित्र - साहित्य के सम्बन्ध में शेष ज्ञातव्य आगरा के नं० १५३८ में ५६ पत्रोंकी हमारे अवलोकन में आई है । २. श्रीपाल रासः - गुणसुन्दर ( उपरोक्त ज्ञानमंदिर में ३ प्रतियें नं० ३५८५-८६ ८७ पत्र १४, १५, १०) ३. श्रीपाल : - गुजराती प्रकाशित संभावना (गद्य) में जैन आफिस से ४. श्रीपाल : - ( संक्षिप्त) धीरजलाल टो० लि० ज्योति कार्यालय से प्र० दिगम्बर १. श्रीपाल चरित्र – (सं०), पं० जगन्नाथ कृत० उ० पं० कैलाशचन्द्रजीको प्राप्त प्राचीन सूचियोंमें २. श्रीपाल चरित्र - भाषावचनिका, श्रमीचंद कृत. जय पुर दि० भंडार ३. श्रीपाल चरित्र - भाषावचनिका, विनोदीलाल जयपुर दि० भंडार सकलकीर्त्ति ४. श्रीपाल चरित्र — भाषावचनिका, मू० रचित पर जयपुर दि० भंडार कर्त्ता श्रज्ञात. ५. श्रीपालचरित्र - (हिन्दी पद्यमय ) सदासुख (?) कृत ० ( रचनाकाल सं० १८५७ श्राषाढ़ कृष्णा ६ रवि. संधि छंद २२६४) इसकी १०४ पत्रेकी एक ७. प्रति मैंने कलकत्तेके दि० बड़े मंदिरमें देखी है । कर्त्ता ने अपना नाम स्पष्ट नहीं सूचित कर कहीं “सुखकर्न' अन्तके छन्द में "अतिसुख" इस प्रकार दिया है अतः नाम सुखकरन या सदासुख होने की | अपने परिचयमें कविने इतना ही कहा है कि " वे पहले पाढिम नगर के निवासी थे फिर सकूराबादमें रहने लगे थे ।” कन्नड भाषा ६. श्रीपालचरित्र – मंगरसइय रचित सं० १५०८ देवरस (सं०१७०० लगभग) वर्द्धमान (सं० १६५० ) " "" ८. ६. १०. 99 39 ४२३ " 39 तृतीयगंगरस इन्द्रदेवकृत भी माना जाता हैं । तामिल साहित्य में भी सम्भव है श्रीपालचरित्र हो पर प्रो० चक्रवर्तीको रिप्लाइ कार्ड देने पर कोई सूचना नहीं मिली। इनमेंसे नं० १ कैलाशचन्द्रजी नं० २,३, ४ की मास्टर मोतीलालजी संघवी, जयपुर, नं० ६ से १० की पं० भुजबल जी शास्त्रीसे सूचना मिली है एतदर्थ मैं उनको धन्यावाद देता हूँ । अन्य विद्वान भी इसी प्रकार विशेष ज्ञातव्य प्रकट करें यहीं नम्र विज्ञप्ति है । 33Page Navigation
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