Book Title: Anekant 1940 05
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 36
________________ १८ अनेकान्त इस बात का पता लगाने की भी कभी कोशिश नहीं की गई है कि इस समय इन १४४ मूरोंमें से कितने जीते जागते हैं और कितनोंका नाम शेष हो चुका है। परवारोंके मूर और गोइयोंके आँकने गोइयों में भी मूर है, परन्तु उन्हें वे आँकने कहते है । कहा तो यह जाता है कि प्रत्येक गोत के छह छह मिला कर ७२ आँकते हैं; परन्तु अब इनका परिवार बढ़ कर सौके पास पहुँच गया है । इन आँकनोंकी सूची देखने से मालूम होता है कि खेड़ों या गाँवोंके नामसे इनका नामकरण हुआ होगा जैसे बड़ेरिया, रूसिया नगरिया, बजरंगढ़िया आदि। कुछ श्रकने पेशोंके कारण भी बने हुए जान पड़ते हैं जैसे सोनी, आदि । 'पूर' का शुद्ध रूप 'मूल' होता है । मूरको एक रूढ़ शब्द ही मानना पड़ता है जो गोत्रोंके अन्तर्गत मैदोंको बतलाता है और शायद उनसे मूल गोत्रोंका ही बोध होता है । किसी मूरमें पेशेकी गन्ध नहीं मिलती। मूरोंके जो अपभ्रष्ट नाम हमें इस समय उपलब्ध ॐ हैं, उनसे उनकी उत्पत्ति बिठाना कठिन है । यही ख्याल होता है कि गोइयोंके समान खेड़ों या गांवोंके नामोंसे . [ वैसाख, वीर निर्वाण सं० २४६६ ही इनका नाम करण हुआ होगा । पद्मावती, सकेसुर, बड़ेरिया, डेरिया, बैसाखिया, बहुरिया आदि मूरोंमें ग्रामों या नगरीका श्राभास मिलता भी है । इस समय इस विषय में इससे और अधिक कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि गोत्र प्रख्यात पुरुषोंके नामसे स्थापित हुए हैं, और मूर गावों या खेड़ोंके नामसे । गोत्र और मूरोंके विषयमें हमें यही मालूम होता है । मास्टर मोतीलालजी की भेजी हुई, और चौथी बा० अकुस्दासजी बी. ए द्वारा भेजी हुई सौ डेड़सौ वर्ष पकी हस्तलिखित पिछली सूचीमें दो गोलों में तेरह तेरह से में ग्यारह ग्यारह, एक में दस और एकमें नौ कसूर हैं। देखो 'गहोई वैश्ववस्थ' के दिसम्बर १६३८ के वशेषांक में श्रीक्त मंडीलाल वकीलका विस्तृत लेख जिसमें प्रत्येक मोठ्के भाँकनों पर विचार किया गया, है । पोरवाड़ोंके गोत चूंकि परवार और पोरवाड़ हमारे ख्यालसे एक ही हैं इसलिये हम पोरवाड़ों के गोत्रों की भी यहाँ चर्चा कर देना चाहते हैं । पोरवाड़ोंके चौबीस गोत्र बतलाये जाते हैं परन्तु उनमें गोत्र-परम्परा एक तरहसे नष्ट हो गई है। जो चौबीस नाम मिलते हैं वे पुस्तकों में ही लिखे हैं उनका कोई उपयोग नहीं होता है। गुजरातकी तो प्रायः सभी जातियोंने अपने गोत भुला दिये हैं । यहाँ तक कि मारवाड़ में जिन श्रोसवालों श्रीमालोंमें गोत्रका व्यवहार भी होता है, वे ही ओसवाल, श्रीमाल गुजरात में आकर गोत्रोंको बिलकुल ही भूल चुके हैं। इसी तरह पद्मावती पोरवाड़ों में भी गोत्र नहीं रहे हैं । कमसे कम उनका उपयोग नहीं किया जाता है । क्या परिवार क्षत्रिय थे ? वर्तमानकी अनेक वैश्य जातियाँ अपनेको क्षत्रिय * १ चौधरी, २ काला, ३ धनदाद, ४ रतनावत, ५ धन्यौत, ६ मनावर्या, ७ खवकरा, ८ भादल्या, कामल्या १० सेठिया, ११ अधिया, १२ वरवयद, १३ भूत १४ फरक्या, १५ बमेपर्या, १६ मंदावर्या, १७ सुनियां १८ छांटा, १३ यलिया, २० भेस्पैदा २१ नवेपर्या, २२ दानगढ़, २३ मेहता २४ खरडया |

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