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अनेकान्त
[ वैसाख, वीरनिर्वाण सं०२४६६
दर्शन सुयुक्तिमूलक दर्शन है, और इसकी उत्पत्ति करते हुए एक तत्त्ववादकी ओर कुछ अग्रसर है, वैदिक कर्मकाण्डके प्रतिवादसे ही हुई थी। नास्तिक किन्तु जैनदर्शन तो नानातत्ववादके ऊपर ही चार्वाक वादका इसके निकट कोई भी आदर पूर्णरूपसे प्रतिष्ठित है। .. नहीं। भारतीय अन्यान्य दर्शनोंकी तरह इसके भी अपने मूल सूत्र तत्व विचार और अपना मत
____ उपसंहारमें इतना ही कहना है कि जैनदर्शन अमत पाया जाता है।
विशेष विशेष विषयोंमें बौद्ध, चार्वाक, वेदान्त,
साँख्य, पातंजलि, न्याय, वैशेषिक दशनोंके सदृश . जैनधर्म और वैशेषिक दर्शनमें भी इतनी होते हुए भी, एक स्वतन्त्र दर्शन है । वह अपनी समता पाई जाती है कि यह बेधड़क कहा जा उत्पत्ति एवं उत्कर्ष के लिए अन्य किसी भी दर्शन सकता है कि इन दोनों में तत्वतः कोई प्रभेद नहीं। के निकट ऋणी नहीं है । भारतीय अन्यान्य परमाणु, दिक, काल, गति, आत्मा प्रभृति तत्व- दर्शनोंके साथ जैनदर्शन समता रखते हुए भी वह विचार इन उभय दर्शनोंका प्रायः एक ही प्रकारका बहुतसे विषयों में सम्पूर्ण, स्वतन्त्र और सविशेष है, किन्तु साथ ही पार्थक्य भी कम नहीं है। रूप से अनोखा है.। वैशेषिक दर्शन बहुतत्व वादी, ईश्वरको स्वीकार