Book Title: Anekant 1940 05
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 44
________________ वर्ष ३, किरण ७ ] छोटे राष्ट्रों युद्ध नीति [ ४६६ फौजका अफसर ठहरा । 'Theirs not t() नहीं थे । नसीबवादी चीन देशके लोगोंने तोquestion why, Theirs not to make चन्द वीर रीकी सारी जनता reply. ने-जो वीरता बताई है, उसे भविष्यका इतिहास ____उसको बहुत बुरा लगा। लेकिन उसने सिंध आश्चर्यचकित होकर अंकित करेगा और उसे पर कब्जा तो किया ही। जब उसे सरकारको यह स्वीकार करना पड़ेगा कि दैववादमें ईश्वरयह लिखना था कि सिंध मेरे हाथमें आगया है, निष्ठा से कम शक्ति नहीं है। लेकिन केवल बहातो उसने लिपिसे लाभ उठाकर अपने दिलका दुरी से कुछ नहीं होता । धन-जनकी बहुतायत, दर्द भी व्यक्त किया। I have Sind लिखने विज्ञानका वैभव और दंभ-मिश्रित अधार्मिक वृत्तिकी जगह उसने लिखा I have Sin's, इतनी तैयारीके बिना दुनियामें स्वतन्त्र रहना ही ___ कोई भी अंग्रेज, अमलदार या इतिहासकार, अशक्य-सा हो गया है। और अगर इतनी तैयारी इस अत्याचारका समर्थन नहीं कर सका है। है तो आपस में लड़े बिना चल ही नहीं सकता। चन्द निर्लज्ज लेखक लिखते हैं कि हमारे अत्या शान्तिके दिनोंमें ये छोटे राष्ट्र आपसमें लड़ चारके फलस्वरूप सिंधके लोगोंको अच्छी राज- - , नहीं सकते, क्योंकि बड़े राष्ट्र उनका नियंत्रण करते व्यवस्था मिलगई, यही सिंध लूटनेका समर्थन है ! , रहते हैं, और बड़ोंका कभी सवाल ही नहीं यूरोपका वर्तमान युद्ध अभी खतम तो नहीं उठता । पोलैण्ड बननेके लिये अलबत्ता लड़ हुआ है । अगर फ्रांस या इङ्गलेण्ड आक्रमणके सकते हैं। मगर पोलैण्डक जैसा अनुभव कोई रास्ते और सख्तीकी राजी खुशीसे बेलजियनोसे भी राष्ट्र दो दना नहीं ले सकता। उनका देश ले लें. तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं है। तब छोटे राष्ट्रोंकी फौज किस कामकी ? हमें हिटलरके राक्षसी कृत्यका समर्थन बिल फ़ौज़के पीछे जो खर्च किया जाता है, वह किस कुल नहीं करना है। हमें तो इतना ही कहना है कामका ? "कुत्ते की ताक़त शिकारीकी मददके कि- 'यद्धातराणां न नयो न लज्जा'-जा लिये." इसी न्यायसं जेक-प्रजा और ऑस्ट्रीयन युद्धातुर होते हैं वे न धर्मको पहचानते हैं, न लोक- प्रजा नॉर्वे पर आक्रमण करनेके ही काम आलज्जाका नियन्त्रण जानते हैं। सकती है। . एबेसीनियासे लेकर नार्वे तकका इतिहास जो क्या इससे बेहतर यह नहीं है कि ऊपर बताए हम अपनी आंखोंके सामने बनता देख रहे हैं, हुए राष्ट्रसप्तकको ही लड़नेका सारा ठेका देकर उससे सिद्ध होता है कि युद्धका रास्ता इङ्गलेण्ड बाकीके सब के-सब राष्ट्र अपनी अपनी फौज फ्रांस, जर्मनी, रूस, इटली, अमेरिका और जापान तोड़कर. या विसर्जन कर, अहिंसक नीतिका के लिये है। बाकीके जितने राष्ट्र हैं उनके लिये प्रयोग करें और अपना एक बड़ा अहिंसक संगठन फौज रखना और न रखना बराबर ही है । युद्ध करके हिंसावादको ही निर्वीय कर डालनेकी करके देशके बहादुर से बहादुर नवयुवकोंका कोशिश करें ? युवकोंका नव दिनका बलिदान देकर गुलाम बनो, अब देखना यह है कि इसपर अमल कैसे हो अथवा “Think God we urender सकता है ? इस हिटलर-युद्धके अन्तमें दुनियाके ( भगवानको धन्यवाद, हम शरण गये ! कहके सामने सबसे महत्वका सवाल यही रहेगा ।* बिना लड़े गुलाम बन जाओ। ऐबीसीनिया, स्पेन, पोलेण्ड आदि देशोंके लोग कुछ कम बहादुर ___*सर्वोदय' के वर्तमान मई मासके १० अंकम उधृत ।

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